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________________ दान दान प्रश्नकर्ता : हाँ, उसकी नींद में भी विक्षेप पड़ा न? दादाश्री : हाँ, फिर वह चौंका न, तो अपना स्वभाव नहीं छोड़ेगा। फिर कभी भौंके भी सही, स्वभाव जो ठहरा। इसलिए उससे तो सोने दें, तो क्या बुरा? इससे मुहल्लेवालों को तो न भौंके। इसलिए अभयदान, किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख नहीं हो, ऐसे भाव पहले रखने और फिर वे प्रयोग में आते हैं। भाव किए हों तो प्रयोग में आते हैं। पर भाव ही नहीं किए हों तो? इसलिए इसे बड़ा दान कहा भगवान ने। उसमें पैसों की कोई जरूरत नहीं । ऊँचे से ऊँचा दान ही यह है, पर यह मनुष्य के बस में नहीं। लक्ष्मीवाले हों, फिर भी ऐसा कर नहीं सकते। इसलिए लक्ष्मीवालों को लक्ष्मी से (दान) पूरा कर देना चाहिए। कितना अधिक लाभ होता है। अब वह पुस्तक लोगों के हाथ में जाए तो कितना अधिक लाभ हो! प्रश्नकर्ता : अब ठीक से समझ में आया.... दादाश्री : हाँ, इसलिए जिसके पास पैसे अधिक हों, उसे ज्ञानदान मुख्यत: करना चाहिए। अब वह ज्ञानदान कैसा होना चाहिए? लोगों को हितकारी हो ऐसा ज्ञान होना चाहिए। हाँ, डकैतों की बातें सुनने के लिए नहीं। वह तो गिराता है। वह पढ़ें तो आनंद तो होता है उसमें, पर नीचे अधोगति में जाता रहता है। ऊँचे से ऊँचा अभयदान और चौथा अभयदान । अभयदान तो, किसी भी जीव मात्र को त्रास न हो ऐसा वर्तन रखना, वह अभयदान। प्रश्नकर्ता : अभयदान जरा अधिक समझाइए। दादाश्री : अभयदान यानी हमसे किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख न हो। उसका उदाहरण देता हूँ। मैं सिनेमा देखने जाता था, छोटी उम्र में, बाईस-पच्चीस वर्ष की उम्र में। तो वापिस आऊँ तो रात के बारह-साढ़े बारह बजे होते थे। पैदल चलते हुए आता था तो जूते खड़कते थे। हम वो लोहे की नाल लगवाते थे, इसलिए खटखट होती और रात में आवाज बहुत अच्छी आती। रात को कुत्ते बेचारे सो रहे होते, वे आराम से सो रहे होते, वे ऐसे करके कान ऊँचे करते। तब हम समझ जाते कि चौंका बेचारा हमारे कारण। हम ऐसे कैसे जन्मे इस मुहल्ले में कि हमसे कुत्ते भी डर जाते हैं। इसलिए पहले से, दूर से ही जूते निकालकर हाथ में लेकर आता और चुपके से आ जाता, पर उसे चौंकने नहीं देता था। यह छोटी उम्र में हमारा प्रयोग। अपने कारण चौंका न? यानी इन चार प्रकार के दान के अलावा अन्य किसी प्रकार का दान नहीं है, ऐसा भगवान ने कहा है। बाकी सब तो दान की बात करते हैं, वे सब कल्पनाएँ हैं। ये चार प्रकार के ही दान हैं, आहारदान, औषधदान, फिर ज्ञानदान और अभयदान। हो सके तब तक अभयदान की भावना मन में करके रखनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : पर अभयदान में से ये तीनों दान निकल आते हैं। इस भाव में से? दादाश्री : नहीं, ऐसा है कि अभयदान तो उच्च मनुष्य कर सकता है। जिसके पास लक्ष्मी नहीं होगी, ऐसा साधारण मनुष्य भी यह कर सकता है। ऊँचे पुरुषों के पास लक्ष्मी हो या नहीं भी हो। यानी लक्ष्मी के साथ उनका व्यवहार नहीं, पर अभयदान तो वे अवश्य कर सकते हैं। पहले लक्ष्मीपति अभयदान करते थे, पर अभी उनसे वह नहीं हो सकता, वे कच्चे होते हैं। लक्ष्मी ही कमा लाए हैं न, वह भी लोगों को डरा-डराकर। प्रश्नकर्ता : भयदान किया है?
SR No.009583
Book TitleDaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size322 KB
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