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भावना से सुधरे जन्मोजन्म
भावना से सुधरे जन्मोजन्म
जरूरत से ज्यादा यों ही खुद को ख्याल नहीं रहे ऐसे बोलता रहे तब मिकेनिकली कहलाये।
इसमें कुछ करना नहीं है प्रश्नकर्ता : इसमें लिखा है कि 'मुझे शक्ति दो, शक्ति दो', तो ऐसा पढ़ने से हमें शक्ति मिल जायेगी?
दादाश्री : बेशक! ये 'ज्ञानी पुरुष' के शब्द हैं!! प्रधानमंत्री की चिट्ठी हो और यहाँ के एक व्यापारी की चिट्ठी हो तो उसमें फर्क नहीं? क्यों आप कुछ बोले नहीं? हाँ, इसलिए यह 'ज्ञानी पुरुष' की बात है। इसमें बुद्धि चलाये तो मनुष्य पागल हो जाये। ये बातें तो बुद्धि से परे हैं।
प्रश्नकर्ता : पर अमल में लाने के लिए उसमें लिखा है उस अनुसार करना होगा न?
दादाश्री : नहीं, इसे पढ़ना ही है। अमल में अपने आप आ जायेगा। इसलिए यह (नौ कलमों की) किताब आप अपने साथ ही रखना और रोज़ाना पढ़ना। आपको इसके अंदर के सारे ज्ञान की जानकारी हो जायेगी। रोज़ बार-बार पढने से आपको इसकी प्रेक्टिस हो जायेगी, तद्प हो जाओगे। आज आपको मालूम नहीं होगा कि इसमें मुझे क्या फायदा हुआ मगर आहिस्ता-आहिस्ता आपको यथार्थ रूप से बैठ जायेगा।
यह शक्ति माँगने पर फिर उसका फल वर्तन के रूप में नज़र आने लगेगा। इसलिए आप 'दादा भगवान' से शक्तियाँ माँगना। और 'दादा भगवान' के पास अपार, अनंत शक्ति है, जो माँगो सो मिले ऐसी। अर्थात् इसे माँगने से क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : शक्ति प्राप्त होगी।
दादाश्री : हाँ, इन कलमों को पालने की शक्ति आने के बाद फिर उसका पालन होगा। वैसे यों ही पालन नहीं होगा। इसलिए आप यह
शक्ति बार-बार माँगते रहना। दसरा कुछ नहीं करना है, ये जो लिखा है वैसा झट से हो जाये ऐसा नहीं है और होगा भी नहीं। आपसे जितना हो सके उतना समझना कि इतना हो पाता है और इतना नहीं हो पाता। जितना नहीं हो पाता उसके लिए क्षमा माँगना और साथ-साथ यह शक्ति माँगना, इससे शक्ति प्राप्त होगी।
माँगो शक्ति, सिद्ध करो काम एक भाई से मैं ने कहा कि, 'इन नौ कलमों में सब समा गया है। इसमें हमनें कुछ बाकी नहीं छोड़ा है। आप ये नौ कलमें रोज पढना।' इस पर उसने कहा, 'पर यह नहीं होगा।' मैंने कहा, 'मैं करने को नहीं कहता। करने की आवश्यकता नहीं है। आप नहीं होगा' ऐसा क्यों कहते हो? आपको तो इतना कहना है कि, 'हे दादा भगवान, मुझे शक्ति दो।' शक्ति माँगने को कहता हूँ। तब कहते है, 'फिर तो इसमें मज़ा आयेगा।' (संसार में) लोगों ने तो करना ही सिखाया है।
फिर मुझे कहते हैं, 'ये शक्तियाँ कौन देगा?' मैंने कहा, 'शक्तियाँ मैं दंगा।' आप चाहे सो शक्तियाँ देने को मैं तैयार हूँ। आपको खुद को माँगना ही नहीं आता, इसलिए मुझे इस तरह से सिखाना पड़ता है कि इस तरह शक्ति माँगना। ऐसा नहीं सिखाना पड़ता? देखिए न, सब सिखाया ही है न! यह मेरा सिखाया ही है न! इस बात पर से वे समझ गये। फिर कहते हैं कि इतना तो होगा, इतने में सब आ गया।
प्रश्नकर्ता : पहले तो यही शंका होती है कि शक्ति माँगने से मिलेगी कि नहीं?
दादाश्री: यह शंका ही ग़लत साबित होती है। अब यह शक्ति माँगते रहते हो न! इसलिए आपमें यह शक्ति उत्पन्न होने के बाद वह शक्ति ही कार्य करवायेगी, आप खुद मत करना। आप करोगे तो अहंकार बढ़ जायेगा। फिर 'मैं करने जाता हूँ लेकिन होता नहीं है' ऐसा होगा, इसलिए केवल शक्ति माँगो।