________________
भावना से सुधरे जन्मोजन्म
भावना से सुधरे जन्मोजन्म
दादाश्री : ऐसा करने पर ही नि:शेष होगा। प्रश्नकर्ता : उसका उदाहरण क्या ले सकते हैं?
दादाश्री : प्रकृति यानी पहले जो भाव किये थे, वे किस आधार पर किये? जो जो आहार खाया उसके आधार पर भाव किये, अब वे भाव मानो कि तेरह से गणा किया। उस भाव को उड़ा देना हो तो तेरह से भाग करने पर नि:शेष होगा। और नये सिरे से भाव उत्पन्न नहीं होने दिया तो वह खाता बंद हो गया। नई इच्छाएँ नहीं हैं. इसलिए खाता बंद हो गया। खाता बंद होना चाहिए न?
वहाँ प्रकृति की शून्यता... प्रश्नकर्ता : शुद्धात्मा का ज्ञान तो दिया, अब यह हमारी प्रकति शून्यता प्राप्त करे उसके लिए ये नौ कलमें बोलें, वह हेल्प करती हैं क्या?
दादाश्री : उससे हेल्प तो होगी ही। जितने से गुणा किया उतने से भाग करना। मुझे डॉक्टर कहते हैं कि, 'यह खाना'। मैंने कहा, 'डॉक्टर, यह बात दूसरे मरीज़ को कहना। यह हमारा गुणा अलग तरह का है। वह मुझे भाग करने को कहे तो उसका किस प्रकार मेल हो?
प्रश्नकर्ता : आप तो ऊपर से अधिक मात्रा में मिर्च लेकर भाग करते हैं?
दादाश्री : हाँ, पूरा कर लेना है।
यह नीरुबहन से मैं कहता हूँ, 'आप कहो तो सुपारी खाऊँ?' और सुपारी खाते समय कहता हूँ कि यह खाँसी करने की दवाई है। तब वह कई बार तो मना करती हैं तो रहने देता हूँ और फिर कहती हैं कि 'लीजिए' तब लेता हैं। इसलिए खाँसी होती है। और (आमतौर पर) मैं सुपारी नहीं खाता हूँ, मुझे किसी चीज़ की आदत नहीं है पर मेरे भीतर भरे हुए माल के हिसाब से खाई जाती हैं न!
हमारा यह 'अक्रम विज्ञान' है! ये जो होता है वह पिछली आदतें पड़ी हुई हैं इसलिए होता है। अब यह शक्ति मांगो। फिर लुब्ध आहार खा लिया उसमें कोई हर्ज नहीं पर इस कलम अनुसार बोलने से आप उस करार में से मुक्त हो जाते हो।
प्रश्नकर्ता : हमारी जो प्रकृति है, उसे यदि गुणा करेंगे तो वह बढ़ जायेगी। इसलिए उसका भाग करना चाहिए। प्रकृति का प्रकृति से भाग करना चाहिए, इसे ज़रा समझाइए।
दादाश्री : अब यह कलम बार-बार बोलने से उसमें भाग होता रहेगा और कम होता जायेगा। यह कलम नहीं बोलने पर (प्रकृति रूपी) पौधा अपने आप पनपता रहेगा। इसलिए यह बार-बार बोलने पर कम हो जायेगा। इसे बोलते रहने से प्रकृति का जो गुणा हुआ है वह टूट जायेगा और आत्मा का गुणा होगा और प्रकृति का भाग होगा। इसलिए आत्मा की पुष्टि होगी। समय मिलने पर ये नौ कलमें रातदिन बोल-बोल कीजिए, फुरसत मिलने पर बोलना। हम तो सारी दवाइयाँ दे देते हैं, सबकुछ समझा देते हैं, फिर आपको जो करना हो सो करना।
प्रत्यक्ष-परोक्ष, जीवित-मृतक हुए... प्रश्नकर्ता : ८. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचित्मात्र भी
दादाश्री : मिर्च लेते समय मैं सब से कहता हूँ कि यह खाँसी की दवाई करता हूँ और खाँसी आये तो दिखाता हूँ कि देखो, आई न खाँसी !
प्रश्नकर्ता : उसमें भाग करना कहाँ आया?
दादाश्री : वही भाग करना कहलाता है। मिर्च नहीं ली होती तो भाग करना पूरा नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् प्रकृति में जो भरा हुआ है, उसे अब पूरा करना है?