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परिशिष्टम् [ ३ ]
श्रीविजयसेनसूरिविरचितरेवंतगिरिरासुपद्यानुक्रमणिका ॥
पद्यांश:
अइरावणगयरायअगुण अंजण
अट्ठविह ए ज्जय ( झय ) अहिणवु नेमिजिणिंद
अंबिल ए जो उपवास आवइ एजे न उज्जिति
उद्वेविणु सिरिनेमिबिंबु एकवीस उपवास तामु कउडिजक्खु मरुदेवि
करवर करपट
गयणगंग जं सयलगहगण ए माहि जिम
गामगर पुरवण गिरिमरुया सिहरि चडेवि गुजरधरधुरिधवलकि
विहुए संघ करे जणु जोव[]जीविय जलदजालवबाले
जहिं जिणु ए उज्जलजं फलुए सिहरसंमेय जाइ कुंदु विहसंतो जणु तर्हि मंडल
श्लो०/पृ० | पद्यांश:
१९- १४७ जिम जिम वायइ
१५-१४४ | जीविउ ए सो जि परिधन्नु
१३-१४९ | ठामि ठामि ए रयण९- १४५ ठिउ निच्चलु देहलिहि
१४- १४९
१६ - १४९
६-१४६
५- १४६
१६- १४७ | १६- १४४ २०- १४७
९- १४८
इ वि अंबि .......
तसु मुह दंसणु
तसु सिरि सामिउ
तहि नयरह उत्तर
तहि नयरह पुरवतहिं पुरि सोहिउ
तेजपालि गिरनारतले
तेजपालि निम्मविउ
दस दिसि ए नेमिकुमारि
दावइ ए दुक्खहं भंगु दिट्ठय छत्रसिलकडणि दियहिं ए नर जो पवर दिसि उत्तर कसमीरदेसु दीसइ दिसि दिसि
२-१४३
१-१४८
७- १४३
१२- १४९ | ८- १४५ ४- १४५ १८- १४९ | दुविहि गुज्जरदेसे
८-१४८
धन सुध
५-१४५
धवल धय ए चमर नायलगच्छह मंडणउ
३-१४३
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श्लो० / पृ०
३-१४५
१७- १४९
७- १४८
९-१४७
७- १४६
५- १४३
४-१४३
१३-१४४
११-१४५
१०- १४४
९-१४३
१७- १४७
५- १४८
४-१४८
२२-१४८
११ - १४८
१-१४६
१८ - १४७
१-१४४
२-१४५
१०- १४८
८-१४३