________________
5
10
15
20
25
१५४]
बार संवच्छरि छियासियए (१२८६) परमेसरु संठिउ । चेत्रह तीजह किसिण पखि निमि भुवणिहि संठिउ ||३९|| बहु आयरिहिं पट्ठकिय बहु भाउ धरंता । रागुन (त) वद्धइ भवियजणाहं निमितित्थु नमंतह ||४०|| श्रावे हंडावडा तणे जिणु पडिलउ न्हवियउ |
पाछइ न्हवियउ सयल संघि तुम्हि पणमहु भवियहु ॥ ४१ ॥ .] तासु कल्याणिकु कीजइ । दसमि तित्थु नेमि जात रेसि संघ पासि मंगीजइ ॥४२॥ संघु रहिउ जिणि जात करिवि नेमिभुवण विसाल । पूरि मणोरह वस्तुपाल मंति तेजपाल ॥४३॥ मूरति बेपु असराज तणी कुमरादिविभाया । काराविय नेमिभुवणुमाहि बिहु निम्मलकाया ॥४४॥ काराविउ निमिभुवण फलु लयउ संसारे । निसुणहु चरितु नदन्ते (त्ते ?) तिणि धंधूय प्रभारे ॥४५॥ रिषभमंदिरु सासणि जाणुं धुंधुय दिन्नउ डकडवाणिउं गाउं । तिणि सुमसीहि उजालिउ नाउं नेमिहि दिन्नु डवाणिउ गाउं ॥ ४६ ॥ [भास]
अनेक संघपति आबुइ आवहिं, कनक कपड निमिजिणु पहिरावहिं ॥४७॥ पूजहि माणिक मोतिय हूले, किवि पूजहिं सोगंधिहिं फूले । केवि हु हियडय भावण भावहिं, केवि हु मंनीणइ आराहहिं ॥ ४८ ॥ केवि चडावलि नेमि नमीजइ, रासु वयणु पाल्हण पुत्र कीजइ । बार संवच्छरि नवमासीए (१२८९), वसंत मासु रंमाउल दीहे ||४९|| एह राहु (सु ? ) विस्तारिहिं जाए, राषइ सयल संघ अंबाई ।
राखइ जाखु जु आछइ खेडइ, राखइ ब्रह्मसंति मूढेरइ ॥५०॥ ॥ आबूरासः समाप्तः ॥
...
१. बपु पिता ॥ २. माणेक अने मोतीना फूलथी ॥
D:\sukarti.pm5\ 3rd proof
[ आबूरास