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[रेवंतगिरिरासु मालवमंडलगुहमुहमंडणु, भावडसाहु दालिधुखंडणु । आमलसार सोवन्नु तिणि कारिउ, किरि गयणंगण सूरु अवयारिउ । अवरसिहर वरकलस झलहलइ मणोहर, नेमिभुयणि तिणि दिट्ठइ दुइ गलइ निरंतर ॥१०॥
द्वितीयं कडवं ॥
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दिसि उत्तर कसमीरदेसु नेमिहि उम्माहिय । अजिउ रतन दुइ बंध गरुय संघाहिव आविय ॥१॥ हरसवसिण घणकलस भरिवि ति न्हवणु करंतह । गलिउ लेव सु नेमिबिंब जलधार पडंतह ॥२॥ संघाहिवु संघेण सहिउ नियमणि संतविउ । हा हा ! धिगु धिगु ! मह विमलकुलगंजणु आविउ ॥३॥ सामियसामलधीरचरण मह सरणि भवंतरि । इम परिहरि आहार नियम लइउ संघधरंधरि ॥४॥ एकवीसि उपवासि तामु अंबिकदेवि आविय । पभणइ सपसन्न देवि जय जय सद्दाविय ॥५॥ उद्वेविणु सिरिनेमिबिंब तुलिउ तुरंतउ। पच्छलु मेम जो एसि वच्छ ! तुं भवणि वलंतउ ॥६॥
णइ वि अंबि........कंचणं............बलाणइ । ...........बिंबु मणिमउ तहिं आणइ ।।७।। पढमभवणि देहलिहि छुडि पुडि आरोविउ । संघाहिवि हरिसेण ताम दिसि पच्छलु जोइउ ॥८॥ ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरिनेमिकुमारो ।
कुसुमवुट्ठि मिल्हेवि देवि किउ जइजइकारो ॥९॥ १. दारिद्रखण्डनः दारिद्रने दूर करनार ॥ २. नेमिनाथना मंदिरनो आमलसारो । ३. बन्धु-भाई ॥ ४. सामियसामल नेमिनाथ भगवान् ॥ ५. सुप्रसन्ना ॥ ६. निषेधार्थक अव्यय ॥ ७. बलानक-मंदिरनो एक भाग ।।
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