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लगी। तब उसके पति ने यह समझकर कि यह डूब जायगी, उस सुन्दरी को शीघ्र ही उठाकर अपने अंगों में लिपटा लिया । वे रमणियाँ यद्यपि जल के भीतर डूबी हुई थीं, फिर भी उनका गोरा शरीर बाहर दिखाई पड़ रहा था । वे रमणियाँ अपने प्रियतमों के साथ दात लगाकर एक दूसरे पर हाथों से पानी फेंक रहीं थीं । जल में भींगने के कारण रमणियों की करधनियाँ ध्वनि रहित हो गयीं थीं । अत्यधिक वेगपूर्वक जल क्रीड़ा करने से जल में गिरे हुए उन रमणियों के सुवर्ण भूषण वाडवाग्नि की ज्वाला सदृश परिलक्षित हो रहे थे । स्नान करती हई सन्दर नेत्रों वाली रमणियों के विशाल एवं स्वच्छ जल बिन्दुओं से मनोहर उनके स्तन कलश इस प्रकार सुशोभित हो रहे थे, मानों सूत्र रहित मुक्ताहारों की मणियों से वे घिरे हुए हों । आभूषणों से रहित होने पर भी उन यादव-रमणियों के शरीर पर पर्याप्त आभूषण दिखाई दे रहे थे, उनके स्तनों पर फेनों की माला सुशोभित हो रही थी, सेवारो से जघन-प्रदेशों पर वस्त्रों की तथा कपोलों पर विन्यस्त पद्म-पत्र-लता की शोभा हो रही थीं । इस प्रकार जल-क्रीड़ा के अनन्तर अपने अद्भुत सौन्दर्य से देवों को भी विस्मित करती हुई कोई सुन्दरी अपने दोनों हाथों में कमल लिये हुए, लक्ष्मी की भांति जल से बाहर निकली । रमणियों ने जिन सूक्ष्म और चिकने वस्त्रों को पहन रखा था, वे जल से भीगकर उनकी जाँघों में चिपक गये थे । कोई सुन्दरी अपने केशपाश को जब हाथों से बाँध रही थी तब उसके बाहुमूल एवं स्तनप्रदेश दिखाई पड़ रहे थे, और उसका प्रियतम उसे अनुराग पर्दूक निर्निमेष देख रहा था । कोई सुन्दरी दोनों कंधों पर केशराशि फैलाकर अपने भीगे हुए शरीर को सुखा रही थी किन्तु उसका शरीर प्रियतम पास में ही होने से पुन: पसीने से भीग जाता था ।
इस प्रकार सरोवर में स्नान करने से जब रमणियों के चित्त से प्रणय-कोप दूर हो गया तथा यदुवंशियों के शरीर की शोभा अत्यन्त बढ़ गयी तथी सूर्य ने जलराशि के भीतर मग्न होने की इच्छा की ।
नवम सर्ग ( सूर्यास्त वर्णन, दूतीकर्म का वर्णन, आहार्य-प्रसाधन की शोभा का वर्णन )
इस प्रकार जलविहार करने के पश्चात् जब यादवाङ्गनाएँ अपने-अपने शिविरों में पहुँची तब सूर्यास्तकालीन दिवस का अन्तिम समय वृद्धावस्था को प्राप्त क्षीण दृष्टि वृद्धपुरुष के सदृश क्षीणकान्ति परिलक्षित हो रहा था । दिवस के अवसान के समय पक्षीगण चहचहाते हुए अपने निवास की ओर लौट रहे थे । रति-क्रीड़ा के लिये कोई सुन्दरी खिड़की पर नजर गड़ाकर वह बार-बार यह नाप रही थी कि अभी एक हाथ दिन बाकी है, अभी एक बित्ता बाकी है... आदि आदि । लाल वर्णवाला समुद्र में आधा डूबा हुआ सूर्य बिम्ब सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा के द्वारा नख से विदीर्ण किये गये सुवर्णमय ब्रह्माण्ड के एक खण्ड की तरह सशोभित हो रहा था । कमलनियाँ मकलित हो रही थी । यद्यपि सूर्य अस्त हो गया था. फिर भी अभी तक नक्षत्र नहीं दिखाई पड़ रहे थे और न चन्द्रमा ही उदित हुआ था, किन्तु शान्त गर्मी वाला अन्धकार रहित आकाश शोभ रहा था । चक्रवाक दम्पति अलग-अलग हो रहे