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घिरा हुआ भगवान् श्रीकृष्ण का शिविर सन्ध्या कालीन किरणों से लाल वर्ण के मेघों से चित्रित नीले आकाश की तरह शोभा दे रहा था। परिजनों द्वारा वाहनों से नीचे उतारी जानेवाली रानियों की मुख - श्री को, जिनके घूंघट का वस्त्र नीचे उतरे समय किंचित् हट गया था, लोग भय मिश्रित कुतूहल के साथ देख रहे थे । जब तक सैनिक उतर रहे थे, तब तक वणिक्जन दोनों ओर तम्बू फैलाकर बिक्री की वस्तुओं से भरी-पूरी दूकानों को सजा रहे थे । दूसरी ओर क्षण-भर में ही नव निर्मित निवास स्थान पर शय्या को सुसज्जित कर एवं अलंकरणों से सजी हुई वेश्याएँ मार्ग की थकान से खिन्न पुरुषों को शीतल जल एवं ताम्बूल आदि उपचारों से स्वागत कर अपने वश में करने में व्यस्त हो गई थीं । सेना के हाथी नदी जल में डूब कर आनन्द ले रहे थे । घोड़े, ऊँट और बैल अपनी विभिन्न प्रकार की क्रीडाओं को कर लोगों को मुग्ध कर रहे थे । वैतालिक यादव - नृपतियों की प्रशस्तियों का गान कर रहे थे ।
षष्ठ सर्ग
(श्री कृष्ण भगवान् की सेवा के लिए रैवतक पर्वत पर छहों ऋतुओं का एक साथ प्रादुर्भूत होने का वर्णन )
श्रीकृष्ण भगवान् की रैवतक पर्वत पर रूकने की इच्छा जानकर उनकी सेवा के लिए वसन्तादि छहों ऋतुओं का एक साथ वहाँ प्रादुर्भाव हुआ। वसन्तऋतु के आगमन पर विभिन्न वृक्षों तथा लताओं ने नवपल्लवों से सुसज्जित होकर सुरभित पुष्पों को धारण कर लिया । शीतल, मन्द और सुवासित समीर बहने लगा । आम्रवृक्षों पर मंजरियों को देखकर कोयलें कुहुकने लगीं, भ्रमरगण अपनी मधुर गुञ्जार से रमणियों को कामपीडित करने लगे । दूतियाँ रमणियों के पतियों के पास जा - आकर उनकी मदनावस्था का वर्णन करके उन्हें रमणियों के पास जाने के लिए प्रेरित करने लगीं । ग्रीष्म ऋतु के आने पर शिरीष तथा नवमल्लिका के पुष्प विकसित हो उठे । कामीजन मद से चंचल हो गये । रमणियाँ आर्द्रचन्दन से सिक्त अपने पीन स्तनों को प्रियतमों के वक्षःस्थल पर रखकर पुनः पुनः उनका आलिङ्गन करने लगीं । वर्षाऋतु में चमकती हुई विद्युत तथा गर्जन करने वाले मेघों से भी भय-भीत न होती हुई कामार्ता रमणियाँ अपने प्रियतमों के पास जाने लगीं । बादलों से बरसे हुए जल को प्राप्तकर मयूरवृन्द एकाएक आनन्द से भर गये, नदियाँ बह निकलीं और भ्रमरियाँ सायंकाल के दीपक की भाँति लालरंग के कन्दली के फूलों पर भ्रमरों के साथ रमण करने लगीं शरद् ऋतु के आरम्भ होने पर आकाश निरभ्र हो गया । चन्द्ररश्मियाँ निर्मल हो गई । मयूरों तथा हंसों के शब्द क्रमशः कर्णकटु तथा कर्णसुखद हो गए । धान की रखवाली करने वाली गोप कन्याओं के मधुर गीत सुनने में तन्मय होकर मृग- समूह धान खाना भूल गये । हेमन्त के आगमन पर जलाशयों का जल जम जाने के कारण कम हो गया । कामी जन विविध प्रकार की सुरतक्रीड़ा में प्रवृत्त हो उठे । शिशिरऋतु के आने पर सूर्य किरणों का