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________________ [ 26 ] माघ कवि भारवि से विशेषरूप से प्रभावित माने जाते हैं । प्रभावित होने का प्रमुख कारण उनकी 'यशोलिप्सा' ही हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि कवि में 'सुकविकीर्ति' को प्राप्त करने का ऐसा दुर्निवार 'अहं' या अभिलाष था, जिससे विवश होकर उसे अपनी व्युत्पन्नता का परिचय हठात् देना पड़ा है। यह निश्चित है कि कवि के हृदय में भारवि के काव्य और उसकी कीर्ति को देखकर यह प्रतिक्रिया जाग्रत हो चुकी थी कि 'किरातार्जुनीयम्' की प्रसिद्धि और लोक प्रियता को दबाकर अपना काव्य 'शिशुपालवध' उससे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त करे । इसीलिए माघ ने सादृश्यवाद को स्वीकार किया है । और पूर्ववर्ती सभी काव्यों विशेषरूप से 'किरातार्जुनीयम्' के वस्तु और शिल्प का सादृश्य स्वीकार कर उस पर अपनी मौलिकता और अगाध व्युत्पन्नता की छाप लगा दी है । कथावस्तु की साज-सज्जा, सर्गों का विभाजन, और वर्ण्य विषयों को प्रस्तुत करने में माघ, भारवि के पद चिह्नों पर चलते परिलक्षित होते हैं । भेद केवल दोनों के इष्ट देवों के कारण है । भारवि ने शिव भक्त होने के कारण महाभारत से शिव से सम्बन्धित इतिवृत्त को ग्रहण किया है, और माघ ने कृष्ण भक्त होने के कारण कृष्ण से सम्बन्धित इति वृत्त को । शिशुपालवध और किरातार्जुनीय में साम्य और वैषम्य इस प्रकार दोनों काव्यों समझा जा सकता है - 1 माघ काव्य के प्रारम्भ में 'श्री' शब्द का प्रयोग मंगलाचरण के लिए है । प्रतिसर्ग के अन्तिम श्लोक में 'श्री' शब्द का उल्लेख है । किरात काव्य के आरम्भ में 'श्री' शब्द का प्रयोग मंगलाचरण के लिए है । प्रतिसर्ग के अन्तिम श्लोक में 'लक्ष्मी' शब्द का प्रयोग किया गया है । * "Moreover it is the one purana which, more than any of others bears the stamp of a unified composition, and deserves to be appreciated as a literary production on account of its language, style, and metere" A History of Indian literature -Vol I, by Winternitz, Calcutta. P. 556 ( १ ) आचार्य बलदेव उपाध्याय ने अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में भागवत का समय षष्ठशतक से कतिपय शताब्दी प्राचीनतर माना है । पृ० ८९ ( २ ) अन्नमलाई विश्वविद्यालय के प्रो० कृष्णमूर्ति शर्मा ने भागवत का समय पाँचवी शती ई० स० माना है । देखिए Annals of the B.O. R. Institute, Vol. XIV& 1932-33 Pp. 182-218 1
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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