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शिशुपालवधम्
द्वादश राजा-(१) शत्रु (२) मित्र ( ३) शत्रु का मित्र (४) मित्र का मित्र, (५) शत्रु के मित्र का मित्र, (६) पाणिग्राह (विजिगीषु राजा की सहायता करने के लिए आनेवाला ) (७) आक्रंद (शत्रु के पीछे सहायता के लिए आनेवाला) (८) पाणिग्राहसार (सहायता करने के लिए अपने पक्षमें बुलाया हुआ)(९) आक्रन्दासार (सहायता करने के लिए शत्रु के पक्ष में बुलाया हुआ) (१०) विजिगीषु (विजय की इच्छा करने वाला) (११) मध्यम और (१२) उदासीन ॥ उपर्युक्त राजाओं में से प्रथम पाँच राजा विजिगीषु राजा की विजययात्रा में क्रमशः आगे रहते हैं और उसके पीछे क्रमशः चार राजा रहते हैं । शत्रु तथा विजिगीषु राजा की भूमिका समीपवर्ती संगठित-असंगठित एवं शत्रु-मित्र को सहायता देने एवं असंगठित शत्रु के निग्रह में समर्थ राजा 'मध्यम' कहलाता है। विजिगीषु राजा और मध्यम राजा की प्रकृति से बाहर तथा मध्यम से भी शक्तिशाली तथा संगठित या असंगठित विजिगीषु एवं मध्यम राजा की सहायता करने में समर्थ एवं असंगठित शत्रुओं के निग्रह में समर्थ राजा उदासीन कहलाता है। इस प्रकार बारह राजाओं का राजमण्डल कहलाता है । ८१ ॥
प्रसङ्ग-उद्धव जी पुनः शान्ति पक्ष का ही प्रतिपादन करते हैंउपायमास्थितस्येत्यराजा न प्रमाद्येदित्युक्तम्, अप्रमादप्रकारमाह
तन्त्रावापविदा योगैमण्डलान्यधितिष्ठता ।
सुनिग्रहा नरेन्द्रेण फणीन्द्रा इव शत्रवः' ।। ८२ ।। तन्नेति ॥ तन्त्रावापी स्वपरराष्ट्रचिन्तनम्, अन्यत्र तन्त्रावापं शास्त्रौषधप्रयोगं च वेत्ति यस्तेन तन्त्रावापविदा ।
'तन्त्रं स्वराष्ट्रचिन्तायामावापः परचिन्तने । शास्त्रौषधान्तमुख्येषु तन्त्रम्
इति वैजयन्ती। योगः सामाधुपायः, अन्यत्र देवताध्यानश्च । 'योगः संनहनोपायध्यानसङ्गतियुक्तिषु' इत्यमरः । मण्डलानि स्वपराष्ट्राणि माहेन्द्रादिदेवतायतनानि च अधितिष्ठताऽतिक्रमता नरेन्द्रेण राज्ञा विषवद्येन च । 'नरेन्द्रो बार्तिके राज्ञि विषवद्ये च कथ्यते' इति विश्वः। शत्रवः फणीन्द्रा इव सुनिग्रहा। सुखेन निग्राह्याः । एवं च प्रकृताप्रकृतविषयः श्लेषः । उपमैवेति केचित् ॥ २ ॥ __ अन्वयः-तन्त्रावापविदा योगैः मण्डलानि अधिष्ठिता नरेन्द्रेण शत्रवः फणोन्द्रा इव सुनिग्रहाः ( सुखेन दमयितुं शक्याः )॥ ८२ ॥
हिन्दी अनुवाद-मणि, मन्त्र, जड़ी और औषधियों को जानने वाला, देवताओं के ध्यान-योग आदि से अपनी रक्षा के लिये निर्मित मण्डलोपर विश्राम
१. अयमग्रिमश्च श्लोको मल्लिनाथीयटीकायां 'स्थायिनोऽर्थे प्रवर्तन्ते' इत्यस्थानन्तरं दृश्यते ।