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________________ शिशुपालवधम् "मूलप्रकृतिरविकृतिमहदायाः प्रकृतिविकृतयः सप्तः । षोडशकस्तु विकारो न प्रकृतिर्न विकृतिः पुरुषः ॥" 'उपर्युक्त सिद्धान्त के अनुसार आप ही साक्षात्कार करने योग्य है'-नारद जी ने कहा। __ प्रसङ्ग-श्रीकृष्ण के निर्गुणस्वरूप का वर्णन करने के पश्चात् आगे के ६ श्लोकों में ३४-३९ उनके सगुणरूप का वर्णन करते हैं। सर्वप्रथम वराहावतार में पृथ्वी के उद्धार का वर्णन किया गया है। सांख्यदर्शनेन हि निःक्रियत्वं प्रतिपाद्याधुना पञ्चरात्रदर्शनेन कर्तृत्वमाहनिवेशयामासिथ हेलयोद्धृतं' फणाभृतां छादनमेकमोकसः। जगत्तयैकस्थपतिस्त्वमुच्चकैरहीश्वरस्तम्भशिरम्सु भूतलम् ॥ ३४॥ एवं भगवतो निर्गुणस्वरूपमुक्त्वा सम्प्रति प्रस्तुतोपयोगितया सगुणमाश्रित्य षड्भिः स्तौति निवेशयामासिथेति॥ जगत्रयस्यैकस्थपतिरेकाधिपतिरेकशिल्पी च। 'स्थपतिरधिपती तक्षिण बृहस्पतिसचिवयोः' इति वैजयन्ती। त्वं हेलयोद्धृतम् । वराहावतारे इति भावः । फणाभृतामोकसः आश्रयस्य समनश्च । 'ओकः सद्मनि चाश्रये' इति विश्वः । एक छादनमावरणं भूतलमुच्चकैरुनतेषु अहीश्वरः शेष एव स्तम्भस्तस्य शिरःसु मूर्धसु अग्रेषु च । फणासहस्रष्विति भावः । निवेशयामासिथ निवेशितवानसि । विशतेय॑न्ताल्लिटि थल् । 'कृञ्चानुप्रयुज्यते लिटि' ( ३३११४०) इत्यस्तेरनुप्रयोगः । अत्र श्लिष्टाश्लिष्टरूपकयोर्हेतुहेतुमद्भावात् श्लिष्टं परम्परितरूपकम् ॥ ३४॥ अन्वयः-जगस्त्रयकस्थपतिः स्वम् हेलया उद्धृतम् फणाभृताम् ओकसः एक छादनम् भूतलम् उच्चकैः अहीश्वरस्तम्भशिरःसु निवेशयामासिथ ॥ ३४ ॥ हिन्दी अनुवाद-लोकत्रय के प्रधान शिल्पी आपने, अनायास उठाए हुए सर्पगृह के (पाताल ) एकमात्र आवरण भूतल को नागराज रूपी ऊँचे खंभों के अग्रभागों पर रख दिया था ॥ ३४ ॥ विशेष-वराहावतार में भगवान् विष्णु ने एकार्णव जल में मग्न पृथ्वी का उद्धार किया था । (महाभा. सभा. ३८-२९ के बाद) प्रसङ्ग-प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण की अपूर्व महिमा का वर्णन किया गया है। १. हेलयोद् धृतम् ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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