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________________ ( ६६ ) (समी १८।१२९), हंसते हुए के लिए हंसस्पृश ( १८१३० ) भावव्यंजक नये शब्द हैं। इसी प्रकार अप्रचलित होते हुए भी अगदंकार (चिकित्सक ४।११६ ), अकूपार ( सागर १२।१८), श्यनंपाता ( आखेट १९।१२ ), मिहिकारुच (चन्द्र १९।३५) हैं । श्रीहर्ष ने तो लोक-भाषा से भी शब्दचयन किया है । जैसे अंगार के लिए इंगाल (१९), प्रताप के किए विरुद (१११३७ ) परंपरा के लिए घोरणि ( १५६४९ ), चपटा के लिए चिपिट ( २२१८५ )। वस्तुतः यह दोष नहीं, यह तो भाषा को जीवंत रखने का एक स्तुत्य प्रयत्न है। इसी लिए 'नैषध' को विद्वानों की औषध कहा गया है, वस्तुतः वह तो जराव्याधिविध्वंसि रसायन है पद-लालित्य तो 'नेपघ' की सर्वस्वीकृत प्रशस्ति है ही, और भी अनेक प्रकार से उसकी कीर्ति वखानी गयी है:(१) तावत् भा मारवे ति यावन्माघस्य नोदयः । उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व भारवि।। (२) काव्ये नैषधनाम्नि घाम्नि सुबृहत्यर्थस्य मुक्ताऽवधे र्भावान् दूरनिगहितान् कथमहं सर्वान् प्रमातुं क्षमः । एतस्मिन् द्युतिमन्ति सन्ति सुबहून्येतानि मध्ये भुवः । साकल्येन लभेत कोऽपि खनिता वचाणि वज्राकरे ॥ (३) कविकुलपतेः श्रीहर्षस्य प्रबन्धरसायनं पिबत श्रोत्रैरन्तविभाव्य सचेतसः । अचतुरपरग्रन्थावर्षः प्रकोपमुपेयुषः प्रकृतिविषमाश्चेतोरोगान्वेतदपोहतु ।। (टोकाकार विशेश्वरमट्टाचार्य)। श्रीहर्ष की प्रशंसा भी अनेक जनों ने मुक्तकंठ से की है-- श्रीरामचन्द्र शेष ने कहा है:-- यः साहित्यरसामृताब्धिलहरीजालेषु खेलाचलो यश्चात्यर्थगभीरतर्कजलघेर्माथे स मंथाचलः । मीमांसायुगसिन्धुतारणविधी या कर्णधारः परः केषामेष मनो विनोदयति न श्रीहषनामा कविः ।। ऐसे ही कहा गया है:-- अन्यः कविभिरक्षुण्णां पदारब्धां सुपद्धतिम् । समादाय कविः श्रेयः श्रीमान् हर्षः प्रतिष्ठिते ।।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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