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________________ द्वितीयः सर्गः पर उतर कर उस ( दमयन्ती ) की सखियाँ होकर लगता है, उस (नगरी) में निवास कर रही थीं । ७९ टिप्पणी- आशय यह है कि दमयन्ती अप्सराओंसे अधिक सौंदर्यशालिनी थी, अप्सराएँ तो उसकी सखी बन कर कुडिनपुरी में उतर आयी थीं । मल्लिI नाथ ने यहाँ उत्प्रेक्षा, विद्याधर ने सापह्नवा उत्प्रेक्षा का उल्लेख किया है ॥ | स्थितिशालिसमस्तवर्णतां न कथं चित्रमयी बिभर्तु या ? स्वरभेदमुपैतु या कथ कलितानल्पमुखारवा न वा ? ॥ ९८ ॥ जीवातु -- स्थितीति । चित्रमयी आश्चर्यप्रचुरा आलेख्यप्रचुरा च, ‘आलेख्याश्वर्ययोश्चित्रमित्यमरः । या नगरी स्थित्या मर्यादया स्थायित्वेन च शालते ये ते समस्ता वर्णा ब्राह्मणादयः शुक्लादयश्च यस्याः तस्या भावस्तत्तां " वर्णो द्विजादी शुक्लादावित्यमरः । कथं न विभर्तु बिभवें वेत्यर्थः । कलितः प्राप्तः अनल्पानां बहूनां मुखानामारवो बहुमुखानां ब्रह्ममुख - पञ्चमुख - षण्मुखानां च आरवः शब्दो यस्याः सा या पुरी स्वरस्य ध्वनेर्भेदं नानात्वं स्वः स्वर्गादभेदं च कथं वा नोपंतु उपैत्वेवेत्यर्थः । उभयत्रापि सति धारणे कार्यं भवेदेवेति भावः ॥ अत्र केवलप्रकृतश्लेषालङ्कारः उभयोरप्यर्थयोः प्रकृतत्वात् । किन्तु एकनाले फलद्वयवदेकस्मिन्नेव शब्दे अर्थद्वयप्रतीतेरर्थश्लेषः प्रथमार्धे । द्वितीये तु जतुकाठवदेकवद्भूताच्छब्दद्वयादर्थद्वयप्रतीतेः शब्दश्लेषः ॥ ९८ ॥ अन्वयः -- चित्रमयी या स्थितिशालि समस्तवर्णतां कथं न बिभत्तु कलितानल्पमुखारवा या कथं वा स्वरभेदं न उपैतु ? हिन्दी - (१) जो आलेख्यों ( चित्रों ) से पूर्ण है, उस नगरी में परस्पर उचित स्थिति प्राप्त करते सभी नील-पीतादि रंग क्यों न रहें ? ( रहेंगे ही ) । और जहाँ प्रचुर मात्रा में मुख शब्द कर रहे हैं ( अनेक व्यक्ति एक साथ बोल रहे हैं ), वहीं स्वर-भेद ( विभिन्न स्वरता ) क्यों न हो ? ( होना ही उचित है ) । ( २ ) जिस नगरी में अपने-अपने आचार का परिपालन करते सभी ब्राह्मणादि चतुर्षणं शोभित हों, ऐसा भाव धारण करती नगरी आश्चर्यमयी क्यों न हो ? ( अन्यत्र वर्णसंकरता है, कुंडिनपुरी में नहीं, अतः उस नगरी को
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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