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नैषधमहाकाव्यम्
टिप्पणी- -- आशय यह है कि कुंडिनपुरी में ऐसे इन्द्रनीलमणिनिर्मित प्रासाद भी थे, जिनकी नीलिमा पर सूर्य भी अप्रभावी था। जो अंधकार एक बार आ गया, वह फिर उन भवनों से सूर्य से आक्रांत होने की आशंका के कारण वापस ही नहीं गया, इन्द्रनीलमणियों की नीलिमा में मिलकर घरों के भीतर ही रह गया । मल्लिनाथ के अनुसार अपह नव, विद्याधर की दृष्टि में अपहनुति, विभावना और उदात्त अलंकार चंद्रकलाकार की दृष्टि में समासोक्ति और उदात्त की संसृष्टि ॥ ७५ ॥
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सितदीप्रमणिप्रकल्पिते यदगारे हसदङ्करोदसि । निखिलान्निशि पूर्णिमा तिथीनुपतस्थेऽतिथिरेकिका तिथिः ॥ ७६ ॥ जीवातु - सितेति । सितैः दीप्रश्च मणिमि । प्रकल्पिते उज्ज्वलस्फटिकनिर्मिते हसदङ्करोदसि विलसदङ्करोदस्के द्यावापृथिवीव्यापिनीत्यर्थः । यदगारे यस्या नगर्या गृहेष्वित्यर्थः । जातावेकवचनं निशि निखिलान् तिथीनेकिका एकाकिनी एकैवेत्यर्थः । ' एकादा किनिच्चासहाय' इति चकारात् कप्रत्ययः । 'प्रत्ययस्थात् कात् पूर्वस्ये' तीकारः । पूर्णिमा तिथी राकातिथिः । 'तदाद्यास्तिथयोरि' त्यमरः । अतिथिः सन् उपतस्थे अतिथिर्भूत्वा सङ्गतेत्यर्थः 'उपाद्देवपूजे’त्यादिना सङ्गतिकरणे आत्मनेपदम् । स्फटिकभवनका न्तिनित्यकीमुदीयोगात् सर्वा अपि रात्रयो राकारात्रय इवासन्नित्यभेदोक्ते रतिशयोक्तिभेदः ॥
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अन्वयः - सितदीप्रमणिप्रकल्पिते हसदङ्करोदसि यदगारे निशि निखिलान् तिथिन् अतिथि: एकिका तिथिः पूर्णिमा उपतस्थे ।
हिन्दी - दीप्तिमय श्वेत स्फटिकमणि-निर्मित, ( अतएव ) समीपस्थ धरतीआकाश विहसित ( प्रकाशित ) करने वाले ( अथवा घरती आकाश के मध्य को प्रकाशित करनेवाले ) जिस नगरी के गृहों में रात्रि में समग्र तिथियों की अतिथिभूता एक तिथि पूर्णिमा ही रहा करती थी ।
टिप्पणी-- आशय यह है कि दमकती स्फटिक मणियों के बने शुभ्र गृहों में वहाँ रात में भी चांदनी जैसा प्रकाश फैला रहता था, लगता था प्रत्येक रात्रि पूर्णिमा है । स्फटिक मणियों से निकलते प्रभापटल के कारण घरों में