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________________ द्वितीयः सर्गः प्रथमं पथि लोचनातिथिं पथिकप्रार्थितसिद्धिशंसिनम् । कलसं जलसंभृतः पुरः कलहंसः कलयाम्बभूव सः ॥ ६५ ॥ जीवातु-अथ श्लोकत्रयेण शुभनिमित्तान्याह-प्रथममित्यादिना । सः कलइंस प्रथममादौ पथि मार्गे लोचनातिथि दृष्टिप्रियं पथिकानां प्रस्थातृणां प्रार्थितस्य इष्टार्थस्य सिद्धिशंसिनं सिद्धिसूचकं जलसम्भृतं जलपूर्ण कलसं पूर्णकुम्भं पुरोऽग्रे कलयांबभूव ददर्श ॥ ६५ ॥ अन्वयः-सः कलहंसः प्रथमं पथि पथिकप्रायितसिद्धिशंसिनं जलसम्भृतं कलसं पुरः लोचनातिथि कलयाम्बभूव । हिन्दी-उस कलहंस ने पहिले मार्ग में पथिकों के अभीष्ट की सिद्धि के द्योतक जलपूर्ण कलस को संमुख नेत्रों का अतिथि बनाया ( देखा )। टिप्पणी- उद्देश्य सिद्धि के द्योतक शुभ शकुनों का तीन श्लोकों (६५-६७) में विवरण प्रस्तुत किया गया है, इस में जलपूर्ण कलश का विवरण है। 'साहित्यविद्याघरी' के अनुसार अनुप्रास और उपमा, चंद्रकलाख्या के अनुसार वृत्यनुप्रास और छेकानुप्रास का एकाश्रयानुप्रवेशसंकर ॥ ६५ ॥ अवलम्ब्य दिदृक्षयाऽम्बरे क्षणमाश्चर्य्यरसालसं गतम् । स विलासवनेऽवनीभृतः फलमैक्षिष्ट रसालसंगतम् ॥ ६६ ॥ जीवातु-अवलम्व्येति । स हंसो दिदृक्षया स्वगन्तव्यमार्गालोकनेच्छया अम्बरे क्षणमाश्चर्यरसेन तद्वस्तुदर्शनिमित्तेन अद्भुतरसेन अलसं मन्दं गतं गतिमवलम्ब्य अवनीभुजो नलस्य विलासवने विहारवने रसालेन चूतवृक्षण सङ्गतं सम्बद्धम्, 'आम्रचूतो रसालोऽसा' वित्यमरः, फलमैक्षिष्ट दृष्टवान् ॥ ६६ ।। अन्वयः-सः दिदृक्षया अम्बरे क्षणम् आश्चर्यरसालसं गतम् अवलम्ब्य अवनोमुजो विलासवने रसालसङ्गतं फलम् ऐक्षिष्ट । हिन्दी--उस ( हंस ) ने देखने की इच्छा से आकाश में क्षण भर विस्मयरस से मंद गति का अवलंबन कर राजा की विलासवाटिका में आम्रवृक्ष पर प्रो फल को देखा।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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