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नैषधमहाकाव्यम्
युक्त हैं। उनकी सुषमा कमल और हंस-दोनों से अधिक कथनीय है। कमलों को चरण होने का गौरव तब मिला, जब उन्होंने सूर्योपासना की और हंसदम्पती को उन चरणों के नपुर होने का तब, जब उन्होंने संसार के निर्माता विधाता की वाहन रूप में सेवा की। लगता है कि विधाता ने दमयन्ती के कमल-चरण बनाकर और कुछ उपयुक्त न पाते हुए अपने वाहन हंसदम्पती को ही उनके नपुर बना दिया। उत्प्रेक्षा। चंद्रकलाकार ने इस श्लोक के पूर्वार्द्ध में गुणोत्प्रेक्षा और उत्तरार्द्ध में श्लेषाधृता अतिशयोक्ति मान कर इनकी संसृष्टि का उल्लेख किया है ।। ३८ ॥
श्रितपुण्यसरःसरित्कथं न समाधिक्षपिताखिलक्षपम् । जलज गतिमेतु मञ्जुलां दमयन्तीपदनाम्नि जन्मनि ।। ३९ ॥
जीवातु-श्रितेति । श्रिताः सेविता: पुण्याः सरःसरितः मानसादीनि सरांसि गङ्गाद्याः सरितश्च येन तत्समाधिना ध्यानेन निमीलनेन क्षपिताखिलक्षपं यापितसर्वरात्रं जलजं दमयन्तीपदमिति नाम यस्मिन् जन्मनि मजुलाङ्गति रम्यगतिमुत्तमदशाञ्च, 'गतिर्मार्गे दशायां चेति विश्वः । कथं नैतु एत्वेवेत्यर्थः । पदस्य गतिसाघनत्वात्तत्रापि दमयन्तीसम्बन्धाच्चोभयगतिलाभः । तथापि जन्मान्तरेऽपि सर्वथा तपः फलितमिति भावः । सम्भाधनायां लोट् ॥ ३९ ॥ ___अन्वयः-श्रितपुण्यसरःसरित् समाधिक्षपताखिलक्षपं जलजं दमयन्तीपदनाम्नि जन्मनि मञ्ज लां गतिं कथं न एतु ?
हिन्दी--पुण्यकर सरोवर और नदियों का आश्रय लेनेवाला ! तीर्थसेवी ) और रात भर मुदा रहकर समाघि लगा समग्र रात्रियां बिताने वाला कमल दमयन्ती-चरण नाम पाकर जिस में जन्मा, उस जन्मान्तर में ऐसी रमणीय गति क्यों न प्राप्त करे ? ( प्राप्त करना ही उचित है )।
टिप्पणी-पूर्वश्लोक में कमलों के दमयन्ती चरण रूप पाने के जिस सौभाग्य की उत्प्रेक्षा की थी, यहाँ उसी के कारण की सम्भावना की गयी है। दिन रात पुण्यतीर्यों में निवास करने और रात-रात भर समाधि में लीन रह