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श्रीहर्ष का समय और निवास-स्थान प्राचीन लेखमाला के २३ वें लेख में महाराज जयंतचन्द्र के दानपत्र से संबद्ध संवत् १२४३ (११८७ ए०डी० ) का स्पष्ट उल्लेख है और २२ वें लेख में यौवराज्य-दानपत्र से संबद्ध संवत् १२२५ ( ११६९ ए०डी० ) का। इस प्रकार राजा जयन्तचन्द्र का समय ईसा की बारहवी शती निर्वीत किया जाता है। श्रीहर्ष जयन्तचन्द के सभापण्डित थे, अतः इन का समय भी ईसवी बारहवीं शती होना चाहिए । इस विषय में थोड़ा-सा विवाद है।
रायल एशियाटिक सोसाइटी, बंबई द्वारा १८७५ ई० से प्रकाशित ग्रन्थ ( पृष्ठ सं० ३७१-३८७ ) में डॉ० जी० बूलर का एक लेख छपा है। इसमें उन्होंने जनकवि राजशेखर के 'प्रबंधकोष' को मान्यता देते हुए यह सिद्ध किया है कि श्रीहर्ष बारहवीं ई० शती के उत्तरमाग में हुए थे। उनके अनुसार 'नैषधीयचरित' की रचना ई० ११६३-११७४ के बीच हुई होगी। जयंतचन्द्र के पिता महाराज विजयचन्द्र के अनुसार जयंतचन्द्र ने ई० ११६३-११७७ के बीच सिंहासन पाया। राजशेखर ने उसे कुमारपाल ( ११४३-११७४ ई० ) का समसामयिक माना है । जयंतचन्द्र ने ई० ११६३ से १९१४ तक काशी में राज्य किया। ११९४ में 'सुरत्राण' (म्लेच्छ सुलतान ) से युद्ध करते समय उसका पराभव हुआ, कदाचित् मृत्यु भी।
डॉ० बूलर ने इससे पूर्व एक संदर्भपत्र एशियाटिक सोसाइटी की एक सभा में पढ़ा था, जिससे उन्होंने श्रीहर्ष की स्थिति बारहवीं ई० शती का अन्तिम भाग बताया था, यह 'इण्डियन आंटीक्वेरी' में छपा । इस पर अनेक विद्वानों ने आपत्ति की और मतभेद प्रदर्शित किया। डॉ० बूलर ने इन सबका युक्तिपूर्वक खंडन किया।
(क) मतभेद-प्रदर्शकों में उन्होंने सर्वप्रथम जस्टिस श्री काशीनाथ त्र्यम्बक तेलंग के मतवाद का उल्लेख किया है, श्रीतेलंग ने 'कुसुमांजलि' के रचयिता उदयनाचार्य का समयनिरूपण करते हुए प्रसंगानुसार श्रीहर्ष के समय पर भी विचार किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि श्रीहर्ष ईसा की नवीं दशवीं शताब्दी में हुए थे, बारहवीं में नहीं। उनके प्रमाण ये हैं---