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________________ मति: स्मृति: संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्।।१३।। मति, स्मरण, संज्ञा (प्रत्यभिज्ञान) चिंता (तर्क) और अभिनिबोध (अनुमान) ये सब एकार्थ वाची हैं। तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ।।१४।। वह मतिज्ञान पाँच इन्द्रिय और छट्टे मन के निमित्त से होता है। अवग्रहहावायधारणा:।।५।। अवग्रह (विशेष कल्पनारहित सूक्ष्म अव्यक्त ज्ञान) ईहा (विचारणा) अवाय (निश्चय) धारणा (बहुत समय तक नहीं भूलना) इसप्रकार मतिज्ञान चार प्रकार का होता है। बहुबहुविधक्षिप्राऽनि: सृताऽनुक्तध्रुवाणां सेतराणाम्।। १६ ।। बहु (अनेक) बहुविध (अनेक तरह) क्षिप्र (जल्दी) अनि:सृत (नहीं निकलना) अनुक्त (बिना कहे जानना) ध्रुव (निश्चित) तथा इनके उल्टे एक, एकविध, अक्षिप्र, नि:श्रित, उक्त और अध्रव इस तरह अवग्रहादि रूप मतिज्ञान होता है। अर्थस्य।१७॥ अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चार प्रकार का मतिज्ञान छ: इन्द्रियों और बारह प्रकार के भेदों सहित अर्थ को ग्रहण करता है। एतावत इसके यहाँ तक २८८ भेद हो गये हैं (६x४= २४४१२-२८८)।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
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