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इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे सप्तमोऽध्यायः ।
अध्याय ८
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाय योगा बंधहेतवः ॥ १ ।। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद कषाय और योग ये पाँच बंध के कारण हैं।
सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्
पुद्गलानादत्ते स बन्धः ॥ २ ॥
कषाय सहित होने से जीव कर्म के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है वह बंध है।
प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशास्तद्विधयः।।३।।
प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इसप्रकार बन्ध चार प्रकार का होता है।
आद्योज्ञानदर्शनावरणवेदनीय मोहनीयायुर्नामगोत्रांतरायाः ।।४।।
पहिला प्रकृतिबंध - (१) ज्ञानावरण ( २ ) दर्शनावरण (३) वेदनीय (४) मोहनीय (५) आयु (६) नाम (७) गोत्र और (८) अन्तराय इस तरह आठ प्रकार का है।
पंचनवद्वयष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद् द्विपञ्चभेदायथाक्रमम् ।।५ ॥
उन आठ मूल प्रकृतियों के क्रम से पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, बयालीस दो और पाँच भेद हैं।