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जो द्रव्य के नित्य आश्रित रहते हों और स्वयं अन्य गुणों से रहित हों वे गुण
हैं।
तद्भावः परिणामः । ४२ ॥ वस्तुओं का जो स्वभाव वह परिणाम है।
इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे पञ्चमोऽध्यायः ।
अध्याय ६
कायवाङ्मनः कर्मयोगः ॥ १ ।।
शरीर, वचन और मन की क्रिया को योग कहते हैं।
स आस्रवः ।। २ ।
वह योग ही कर्मों के आगमन का द्वार रूप आश्रव है।
शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य ॥३॥
शुभयोग पुण्य का आश्रव है और अशुभ योगपाप का आश्रव है।
सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्य्यापथयोः ॥ ४ ॥ कषाय सहित जीवों के साम्परायिक और कषाय रहित जीवों के ईर्यापथ आश्रव होता है।
इन्द्रियकषायाब्रतक्रियाः पञ्चचतुः पञ्चपञ्चविं— शति संख्या: पूर्वस्य भेदाः ॥ ५ ॥
पाँच इंद्रिय, चार कषाय, पाँच अव्रत और पच्चीस क्रिया ये सब पहिले साम्परायिक आश्रव के भेद हैं।