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हिमवान् क्षेत्र के हरिक्षेत्र के देवकुरु भोगभूमि के मनुष्य क्रम से एक, दो और तीन पल्य की आयु वाले होते हैं।
तथोत्तराः॥३०॥ जैसे दक्षिण के क्षेत्रों की रचना है, उसी प्रकार उत्तर के क्षेत्रों
की है।
विदेहेषुसंख्येयकाला:।।३१ ।।
पाँचों ही विदेह क्षेत्रों में संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य होते हैं।
भरतस्यविष्कम्भोजम्बूद्वीपस्यनवतिशतभागः।।३२।। भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप के १/१९० भाग प्रमाण है।
द्विर्धातिकीखण्डे।।३३।। धातकी खण्ड नामक दूसरे द्वीप में भरतादि क्षेत्र दो दो हैं।
पुष्करार्धे च॥३४।।
पुष्कर द्वीप के आधे भाग में भी धातकीखण्ड के समान भरतादि क्षेत्र जम्बूद्वीप से दगने हैं।
प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्या:।।३५॥
मानुषोत्तर पर्वत के पहिले पहिले ही अढ़ाई द्वीप में मनुष्य उत्पन्न होते हैं।
आर्या म्लेच्छाश्च।।३६।। ये मनुष्य आर्य और म्लेच्छ के भेद से दो प्रकार के हैं
भरतैरावतविदेहा: कर्मभूमयोऽन्यत्रदेवकुरूत्तर