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________________ तत्त्वार्थ सूत्र (सार्थ) मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां। ज्ञातारं विश्वतत्वानां बंदे तद्गुणलब्धये।। त्रैकाल्यं द्रव्यषट्कं नवपदसहितं जीवषट्कायलेश्याः । पंचान्ये चास्तिकाया व्रतसमितिगतिज्ञानचारित्रभेदाः।। इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभुवनमहितैः प्रोक्तमर्हद्भिरीशैः। प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् यः स वै शुद्धदृष्टिः।।१।। सिद्ध जयप्पसिद्धे, चउविहाराहणाफलं पत्ते। वंदित्ता अरहंते, वोच्छं आराहणा कमसो।।२।। उज्झोवणमुज्झवणंणिव्बाहणं साहणं च णिच्छरणं। दंसणणाण चरित्तं तवाणमाराहणा भणिया।।३।। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।।१।। सम्यग्दर्शन, सम्यगान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिलकर मुक्ति के मार्ग हैं। तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।।२।। तत्वभूत पदार्थों के विषय में श्रद्धा करना सो सम्यग्दर्शन है। (पदार्थों का यथार्थ ज्ञान होना सो सम्यगान है तथा आत्मा के स्वरूपकी प्राप्ति के लिए सम्यक् प्रवृति करना सो सम्यक् चारित्र है।) तन्निसर्गादधिगमाद्वा।।३।।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
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