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और उपपद ये तीन प्रकार के
संसारी जीवों के सम्मुर्छन, गी जन्म होते हैं।
सचित्तशीतसंवृता सेतरामिश्चाश्चैकशस्तद्योनयः।।३२।।
तीन प्रकार के जन्म वाले जीवों की सचित्त शीत और संवृत्त (गुप्त) तथा इनके प्रतिपक्षी अचित्त, उष्ण और विवृत (प्रकट) तथा मिश्र अर्थात् सचित्तचित, शीतोष्ण एवं संवृत्तविवृत य नौ योनियाँ होती हैं।
जरायुजण्डजपोतानाम् गर्भ:।।३३।।
जरायु से पैदा होने वाले, अण्डे से पैदा होने वाले तथा पोत जीवों के गर्भ जन्म होता है।
देवनारकाणामुपपाद:।।३४|| देव और नारकियों का उपपाद जन्म होता है।
शेषाणाम् सम्मूर्छनम्।।३५।। बाकी के रहे हुए जीवों का जन्म सम्मूर्छन होता है।
औदारिकवैक्रियिकाहारक तैजस
कार्मणानि शरीराणि॥३६॥ औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण में पाँच प्रकार के शरीर होते हैं।
परं परं सूक्ष्मम् ।।३७॥
उन पाँचों शरीरों में आगे आगे के शरीर पूर्व शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म हैं।
प्रदेशताऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् ।।३८ ।।