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________________ जीवत्व भव्यत्व और अभव्यत्व ये तीन पारिणामिक भाव हैं तथा च शब्द स अस्तित्व, नित्यत्व, प्रदेशत्व आदि भाव का भी ग्रहण होता है। उपयोगो लक्षणम्।।८।। जीव का लक्षण उपयोग (बोधरूप व्यापार) है स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः।।९।। वह उपयोग दो प्रकार का है ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोग। ज्ञानोपयोग मतिज्ञानादि के भेद से आठ प्रकार का है तथा दर्शनोपयोग चक्षदर्शनादि के भेद से चार प्रकार का है। संसारिणो मुक्ताश्च।१०।। संसार और मुक्त अवस्था के भेद से जीव दो प्रकार का है। समनस्कामनस्का:।११।। मन सहित संज्ञी और मन रहित असंज्ञा ये संसारी जीवों के दो भेद हैं। संसारिणस्त्रसस्थावरा।२।। संसारी जीवों के त्रस और स्थावर ये भी दो भेद हैं। पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतय: स्थावराः ।।१३।। पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायकाय और वनस्पतिकाय ये पाँच स्थावर जीवों के भेद हैं। द्वीन्द्रीयादयस्त्रसा:।।४।। दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिया, चारइन्द्रिय और पंचइन्द्रिय, जीवों की त्रस संज्ञा है।
SR No.009563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, & Tattvartha Sutra
File Size219 KB
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