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समयसार
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अज्ञानसे पुण्यकी इच्छा करते हैं। यद्यपि वह पुण्य संसारगमनका कारण है तो भी उसकी इच्छा करते हैं। ऐसे जीव मोक्षका हेतु जो ज्ञानस्वरूप आत्मा है उसे नहीं जानते हैं । । १५४ ।।
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आगे ऐसे जीवोंको परमार्थभूत मोक्षका कारण दिखलाते हैं। जीवादीसहहणं, सम्मत्तं तेसिमधिगमो णाणं ।
यादी परिहरणं, चरणं एसो दु मोक्खपहो । । १५५ ।।
जीवादि पदार्थोंका श्रद्धान करना सम्यक्त्व है, उनका ठीक ठीक जानना ज्ञान है और रागादिका त्याग करना चारित्र है। यह सम्यक्त्व, ज्ञान तथा चारित्र ही मोक्षका मार्ग है । । १५५ ।।
आगे व्यवहार मार्गसे कर्मका क्षय नहीं होता यह कहते हैं
मोत्तूण णिच्छय, ववहारेण विदुसा पवट्टेति ।
परमट्टमस्सिदाण दु, जदीण कम्मक्खओ विहिओ । । १५६ । ।
विद्वान निश्चयनयके विषयको छोड़कर व्यवहारसे प्रवृत्ति करते हैं, परंतु कर्मोंका क्षय परमार्थका आश्रय करनेवाले यतीश्वरोंके ही कहा गया है । । १५६ ।।
आगे कर्म मोक्षके कारणभूत सम्यग्दर्शनादि गुणोंका आच्छादन करते हैं यह दृष्टांत द्वारा सिद्ध करते हैं -
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१. होदिं ज. वृ.
वत्थस्स सेदभावो, जह णासेदि मलमेलणासत्तो । मिच्छत्तमलोच्छण्णं, तह सम्मत्तं खु णायव्वं । । १५७ ।। वत्थस्स सेदभावो, जह णासेदि मलमेलणासत्तो । अण्णाणमलोच्छण्णं, तह णाणं होदि णायव्वं । । १५८ । । वत्थस्स सेदभावो, जह णासेदि मलमेलणासत्तो । कसायमलोच्छण्णं, तह चारित्तं होदि णायव्वं । । १५९ ।।
जिस प्रकार वस्त्रका श्वेतपना मलके मिलनेसे लिप्त हुआ नष्ट हो जाता है उसी प्रकार सम्यग्दर्शन मिथ्यादर्शनरूपी मलसे आच्छादित हो नष्ट हो जाता है यह निश्चयसे जानना चाहिए। जिस प्रकार वस्त्रका
श्वेतपना मलके मिलनेसे आसक्त हुआ नष्ट हो जाता है उसी प्रकार अज्ञानरूपी मलसे आच्छादित हुआ जीवका ज्ञान नष्ट हो जाता है ऐसा जानना चाहिए। तथा जिस प्रकार वस्त्रका श्वेतपना मलके मिलनेसे आसक्त हुआ नष्ट हो जाता है उसी प्रकार कषायरूपी मलसे आच्छादित चारित्र गुण नष्ट हो रहा है यह भी जानना चाहिए ।। १५७-१५९ ।।