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________________ २०४ कुन्दकुन्द-भारता किसी एक मार्गके आलंबनसे संयमकी सिद्धि नहीं हो सकती है।।३० ।। आगे उत्सर्गमार्ग और अपवादमार्गके विरोधसे चारित्रमें स्थिरता नहीं आ सकती है यह कहते हैं -- आहारे व विहारे, देसं कालं समं खमं उवधिं। जाणित्ता ते समणो, वट्टदि जदि अप्पलेवी सो।।३१।। मुनि, देश काल श्रम और शरीररूप परिग्रहको अच्छी तरह जानकर आहार तथा विहारमें प्रवृत्ति करता है। यद्यपि ऐसा करनेसे अल्प कर्मबंध होता है तो भी वह आहारादिमें उक्त प्रकारसे प्रवृत्ति करता है। आहारादिके ग्रहणमें अल्प कर्मबंध होता है। इस भयसे जो अत्यंत कठोर आचरणके द्वारा शरीरको नष्ट कर देते हैं वे देवपर्यायमें पहुँचकर असंयमी हो जाते हैं और संयमके अभावमें उनके अधिक कर्मबंध होने लगता है। इस प्रकार अपवादमार्गका विरोध कर केवल उत्सर्ग मार्गके अपनानेसे चारित्र गुणका घात होता है। इसी प्रकार कोई शिथिलाचारी मुनि आहार विहारमें प्रवृत्ति करते हुए शुद्धात्म भावनाकी उपेक्षा कर देते हैं उनके ऐसा करनेसे अधिक कर्मबंध होने लगता है। इस प्रकार उत्सर्गमार्गका विरोध कर केवल अपवाद मार्गके अपनानेसे चारित्र गुणका घात होता है। अतः उसकी स्थिरता रखनेवाले मुनियोंको उक्त दोनों मार्गों में निर्विरोध प्रवृत्ति करनी चाहिए ऐसी शास्त्राज्ञा है।।३१।। आगे एकाग्रतारूप मोक्षमार्गका कथन करते हैं। उस एकाग्रताका मूल साधन आगम है, अत: उसीमें चेष्टा करनी चाहिए यह बतलाते हैं -- एयग्गगदो समणो, एयग्गं णिच्छिदस्स अत्थेसु। णिच्छित्ती आगमदो, आगमचेट्ठा तदो जेट्ठा ।।३२।। श्रमण वही है जो एकाग्रताको प्राप्त है, एकाग्रता उसीके होती है जो जीवाजीवादि पदार्थों के विषयमें निश्चित है अर्थात् संशय विपर्ययादि रहित सम्यग्ज्ञानका धारक है और पदार्थोंका निश्चय आगमसे होता है इसलिए आगमके विषयमें चेष्टा करना -- आगमका ज्ञान प्राप्त करनेके लिए उद्योग करना श्रेष्ठ है।।३२।। आगे आगमसे हीन मुनि कर्मोंका क्षय नहीं कर सकता यह कहते हैं -- आगमहीणो समणो, णेवप्पाणं परं वियाणादि। अविजाणतो अत्थे, खवेदि कम्माणि किध भिक्ख।।३३।। आगमसे हीन मुनि न आत्माको जानता है और न आत्मासे भिन्न शरीरादि परपदार्थोंको। स्व-पर पदार्थोंको नहीं जाननेवाला भिक्षु कर्मोंका क्षय कैसे कर सकता है? आगे मोक्षमार्गमें गमन करनेवाले साधुके आगम ही चक्षु है यह बतलाते हैं --
SR No.009560
Book TitlePravachana Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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