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कुन्दकुन्द-भारती जिस प्रकार आकाशमें प्रदेश होते हैं उसी प्रकार शेष -- धर्म, अधर्म और एक जीव तथा पुद्गलके भी प्रदेश होते हैं। परमाणु स्वयं अप्रदेश है -- द्वितीयादि प्रदेशोंसे रहित है परंतु उससे ही प्रदेशोंकी उत्पत्ति कही गयी है।
पुद्गलका परमाणु आकाशके जितने क्षेत्रको रोकता है उसे आकाशका एक प्रदेश कहते हैं। ऐसे प्रदेश आकाशमें अनंत हैं। एक प्रदेशप्रमाण आकाशमें विद्यमान धर्म अधर्म द्रव्यके अंश एक प्रदेश कहलाते हैं। ऐसे प्रदेश धर्म अधर्म द्रव्यमें अनंत हैं। इसी प्रकार जीव और पुद्गलमें भी प्रदेशोंका सद्भाव समझ लेना चाहिए। एक जीव द्रव्यमें असंख्यात प्रदेश हैं तथा पुद्गलमें स्कंधकी अपेक्षा संख्यात, असंख्यात
और अनंत प्रदेश हैं। परमाणु एक प्रदेशात्मक है। इस प्रकार सब द्रव्योंमें प्रदेशका व्यवहार परमाणुजन्य ही है।। ४५।। अब कालाणु प्रदेशरहित ही है इस बातका नियम करते हैं --
'समओ दु अप्पदेसो, पदेसमेत्तस्स दव्वजादस्स।
वदिवददो सो वट्टदि, पदेसमागासदव्वस्स।।४६।। समय अप्रदेश है , द्वितीयादि प्रदेशोंसे रहित है। जब एक प्रदेशात्मक पुद्गलजातिरूप परमाणु मंद गतिसे आकाश द्रव्यके एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशके प्रति गमन करता है तब उस समयकी उत्पत्ति होती है।
यहाँ काल द्रव्यकी समय पर्याय और उसका उपादान कारण कालाणु दोनोंको एक मानकर कथन किया।।४६।। अब काल पदार्थके द्रव्य और पर्यायका विश्लेषण करते हैं --
वदिवददो तं देसं, तस्सम समओ तदो परो पुव्वो।
जो अत्थो सो कालो, समओ उप्पण्णपद्धंसी।।४७।। आकाशके उस प्रदेशके प्रति मंदगतिसे जानेवाले परमाणुके जो काल लगता है उसके बराबर सूक्ष्मकाल है। काल द्रव्यकी पर्याय भूत समय कहलाता है और उसके आगे तथा पहले अन्वयी रूपसे स्थिर रहनेवाला जो पदार्थ है वह काल द्रव्य है। समय वर्तमान पर्यायकी अपेक्षा उत्पन्न प्रध्वंसी है -- उत्पन्न होकर नष्ट होता रहता है।।४७।। अब आकाशके प्रदेशका लक्षण कहते हैं --
आगासमणुनिविटुं, आगासपदेससण्णया भणिदं।
सव्वेसिं च अणूणं, सक्कदि तं देदुमवकासं।।४।। १. समयपर्यायस्योपादानकारणत्वात्समयः कालाणुः ज. वृ. । २. आयास ज. वृ. । ३. आयास ज. वृ.। . . ४. शेष पञ्चद्रव्यप्रदेशानां परमसौक्ष्म्यपरिणतानन्तपरमाणुस्कन्धानां च ज. वृ. ।