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________________ १३८ कुन्दकुन्द-भारती ज्ञान आत्मस्वरूप है परंतु ज्ञेय आत्मा और अनात्माके भेदसे दो प्रकारका है।।३६।। आगे अतीत अनागत पर्यायें वर्तमानकी तरह ज्ञानमें प्रतिभासित होती हैं ऐसा कथन करते ihe तक्कालिगेव सव्वे, सदसब्भूदा हि पज्जया तासिं। व,ते ते णाणे, विसेसदो दव्यजादीणं ।।३७।। उन प्रसिद्ध जीव-पुद्गलादिक द्रव्यजातियोंके वे समस्त विद्यमान और अविद्यमान पर्याय निश्चयसे ज्ञानमें अपनी-अपनी विशेषता लिये हुए वर्तमान कालसंबंधी पर्यायोंकी तरह विद्यमान रहते हैं। ज्ञान चित्रपटके समान है। जिस प्रकार चित्रपटमें भूत भविष्यत् और वर्तमान काल संबंधी वस्तुओंके चित्र युगपत् प्रतिभासित रहते हैं उसी प्रकार ज्ञानमें भी भूत भविष्यत् और वर्तमान काल संबंधी द्रव्य पर्याय प्रतिभासित होते रहते हैं।।३७।। आगे अविद्यमान पर्याय किसी अपेक्षासे विद्यमान है ऐसा बतलाते हैं -- जे णेव हि संजाया, जे खलु णट्ठा भवीय पज्जाया। ते होंति असब्भया. पज्जाया णाणपच्चक्खा।।।८।। निश्चयसे जो पर्याय उत्पन्न नहीं हुए हैं और जो उत्पन्न होकर नष्ट हो गये हैं वे अतीत और अनागत काल संबंधी समस्त पर्याय यद्यपि असद्भूत पर्याय हैं -- वर्तमानमें अविद्यमान रूप हैं तथापि ज्ञानमें प्रत्यक्ष होनेसे कथंचित् सद्भूत हैं।।३८ ।। आगे असद्भूत पर्यायें ज्ञानमें प्रत्यक्ष हैं इसीको पुष्ट करते हैं -- ___ यदि पच्चक्खमजादं, पज्जायं पलयिदं ण णाणस्स। ___ण हवदि वा तं णाणं, दिव्वंति हि के परूविंति।।३९।। यदि अजात -- अनुत्पन्न और प्रलयित -- विनष्ट पर्याय केवलज्ञानके प्रत्यक्ष नहीं होते तो उसे 'यह दिव्य ज्ञान है -- सबसे उत्कृष्ट ज्ञान है ऐसा कौन प्ररूपण करते हैं। केवलज्ञानकी उत्कृष्टता इसीमें है कि वह अतीत-अनागत पर्यायोंको भी प्रत्यक्षवत् स्पष्ट जानता है।।३९ ।। आगे इंद्रियजन्य ज्ञान अतीत अनागत पर्यायोंके जाननेमें असमर्थ है ऐसा कहते हैं -- __अत्थं अक्खणिवदिदं, ईहापव्वेहिं जे विजाणंति । तेसिं परोक्खभूदं, णादुमसक्कंति पण्णत्तं ।।४।। जो जीव इंद्रियगोचर पदार्थको ईहा-अवाय-धारणापूर्वक जानते हैं उन्हें परोक्ष पदार्थ -- असद्भूत पर्यायका जानना अशक्य है ऐसा जिनेंद्र भगवानने कहा है।।४।। १. अटुं ज. वृ. ।
SR No.009560
Book TitlePravachana Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages88
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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