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कुन्दकुन्द-भारती सात भंगोंका निरूपण सिय अत्थि णत्थि उहयं, अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं ।
दव्वं ख सत्तभंगं, आदेसवसेण संभवदि।।१४।। निश्चयसे द्रव्य, विवक्षाके वश निम्नलिखित सप्तभंगरूप होता है। जैसे -- स्यादस्ति -- किसी प्रकार है, २. स्यान्नास्ति -- किसी प्रकार नहीं है, ३. स्यादुभयम् -- किसी प्रकार अस्ति-नास्ति दोनों रूप है, ४. स्यादवक्तव्यम् -- किसी प्रकार अवक्तव्य है, ५. स्यादस्ति अवक्तव्यम् -- किसी प्रकार अस्तिरूप होकर अवक्तव्य है, ६. स्यान्नास्ति अवक्तव्यम् -- किसी प्रकार नास्तिरूप होकर अवक्तव्य है, और ७. स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्यम् -- किसी प्रकार अस्ति-नास्ति दोनों रूप होकर अवक्तव्य है।।१४ ।।
गुण और पर्यायोंमें उत्पाद तथा व्ययका वर्णन भावस्स णत्थि णासो, णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो।
गुणपज्जयेसु भावा, उप्पादवए पकुव्ति।।१५।। सत् पदार्थका नाश नहीं होता और न असत् पदार्थका उत्पाद ही। पदार्थ गुण और पर्यायोंमें ही उत्पाद तथा व्यय करते हैं।।१५।।
___द्रव्योंके गुण और पर्यायोंका वर्णन भावा जीवादीया, जीवगुणा चेदणा य उवओगो।
सुरणरणारयतिरिया, जीवस्स य पज्जया बहुगा।।१६।। जीव आदि छह पदार्थ भाव हैं, चेतना और उपयोग जीवके गुण हैं, देव मनुष्य नारकी और तिर्यंच ये जीवके अनेक पर्याय हैं।।१६।।
दृष्टांत द्वारा उत्पाद व्यय और ध्रौव्यकी सिद्धि मणुसत्तणेण णट्ठो, देही देवो हवेदि इदरो वा।
उभयत्त जीवभावो, ण णस्सदि ण जायदे अण्णो।।१७।। मनुष्यपर्यायसे नष्ट हुआ जीव देव अथवा अन्य पर्यायरूप हो जाता अवश्य है, परंतु जीवत्वभावका सद्भाव दोनों ही पर्यायोंमें रहता है। पूर्व जीवका न तो नाश ही होता है और न अन्य जीवका उत्पाद ही।।१७।।
सो चेव जादि मरणं, जादि ण णट्ठो ण चेव उप्पण्णो।
उप्पण्णो य विणट्ठो, देवो मणुसो त्ति पज्जाओ।।१८।। वही जीव उपजता है जो कि मरणको प्राप्त होता है। स्वभावसे जीव न नष्ट होता है और न उपजता ही है। देव उत्पन्न हुआ और मनुष्य नष्ट हुआ, यह पर्याय ही तो उत्पन्न हुआ और पर्याय ही नष्ट