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________________ पंचास्तिकाय २७ नित्यद्रव्य है। जिसप्रकार 'सिंह' यह शब्द सिंह शब्दवाच्य मृगेंद्र अर्थका प्ररूपक है उसी प्रकार 'काल' यह शब्द, कालशब्दवाच्य निश्चयकालद्रव्यका प्ररूपक है। दूसरा व्यवहारकाल उत्पन्न होता है और नष्ट होता है तथा समयोंकी परंपराकी अपेक्षा स्थायी भी है।।१०१।। ___जीवादि द्रव्य अस्तिकाय हैं, काल अस्तिकाय नहीं है एदे कालागासा, धम्माधम्मा य पुग्गला जीवा। लब्भंति दव्वसण्णं, कालस्स दु णत्थि कायत्तं ।।१०२।। यही सब जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश द्रव्य व्यपदेशको प्राप्त हैं -- द्रव्य कहलाते हैं, परंतु जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाशमें बहुप्रदेशी होनेसे जिसप्रकार अस्तिकायपना है उस प्रकार कालद्रव्यमें नहीं है। कालद्रव्य एकप्रदेशात्मक होनेसे अस्तिकाय नहीं है।।१०२।। पंचास्तिकाय संग्रहके जाननेका फल एवं पवयणसारं, पंचत्थियसंगहं वियाणित्ता। जो मुयदि रागदोसे, सो गाहदि दुक्खपरिमोक्खं ।।१०३।। इस प्रकार पंचास्तिकायके संग्रहस्वरूप द्वादशांगके सारको जानकर जो राग और द्वेष छोड़ता है वह संसारके दुःखोंसे छुटकारा पाता है।।१०३।। मुणिऊण एतदटुं, तदणुगमणुज्झदो णिहदमोहो। पसमियरागबोसो, हवदि हदपरावरो जीवो।।१०४ ।। इस शास्त्रके रहस्यभूत शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्माको जानकर जो पुरुष तन्मय होनेका प्रयत्न करता है वह दर्शनमोहको नष्ट कर राग-द्वेषका प्रशमन करता हुआ संसाररहित हो जाता है। पूर्वापर बंधसे रहित हो मुक्त हो जाता है।।१०४ ।। इस प्रकार छह द्रव्य और पंचास्तिकायका वर्णन करनेवाला प्रथम श्रुतस्कंध समाप्त हुआ। *** मोक्षमार्गके कथनकी प्रतिज्ञा अभिवंदिऊण सिरसा, अपुणब्भवकारणं महावीरं । तेसिं पयत्थभंगं, मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि।।१०५ ।। अब मैं मोक्षके कारणभूत श्री महावीरस्वामीको मस्तकद्वारा नमस्कार कर मोक्षके मार्गस्वरूप नव पदार्थों को कहूँगा।।१०५ ।।
SR No.009558
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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