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________________ ७२ पदार्थ विज्ञान होता है, परन्तु घडेका आकाश अर्थात् घडेके बोचकी पोलाहट उस घडेके ही आकारवाली होती है। अथवा जिस प्रकार प्रकाश यद्यपि व्यापक होता है, परन्तु घडेके वीचमे बन्द कर दिया जानेपर उसकी आकृति घडे-जैसी ही हो जाती है। इसी प्रकार जोवका आकार शरीरके जैसा ही होता है। कल्पना करो कि यह शरीर अन्दरसे विलकुल पोला है अर्थात् इसमे हडी-मास कुछ भी नहीं है केवल ऊपरका यह चमडा मात्र है। अब इसके बीचमे उम पोलाहटकी जो आकृति प्रतीतिमे आती है, बस वही जोक्का आकार जानो। वैदिक दशनकार जीवका भी कोई आकार नहीं मानते, परन्तु जैन दर्शनकारो की तीक्ष्ण-बुद्धि इस प्रकारसे निराकार जीवको साकार मानना युक्त समझती है । इसका भी एक कारण है। लोकमे दो प्रकारसे पदार्थ जाननेमे आते है-एक पदार्थ-रूपसे और दूसरे उसके गुण या शक्ति-रूपसे । जिस प्रकार कि दीपक त्तथा दीपकका प्रकाश, इजन तथा इंजनको शक्ति । शक्तिका कोई आकार नही होता, जैसे कि दीपकके प्रकाश या इजनकी शक्तिका कोई आकार नही है। परन्तु उस पदार्थका आकार अवश्य होता है जिसकी कि वह शक्ति है, जैसे दीपक तथा इजनका आकार अवश्य है। इसी प्रकार जीवको भी दो प्रकारसे देखा जा सकता है-जीव पदार्थ तथा उसकी शक्ति अर्थात् चेतना । चेतनाका भले कोई आकार न हो, क्योकि वह तो एक शक्ति है, परन्तु जीवका तो आकार अवश्य होना ही चाहिए। कोई भी शक्ति बिना किसी आकारवान् पदाथके स्वतन्त्र रहती हुई नही देखी जाती। जैसे कि दीपकका प्रकाश दीपकके बिना स्वतन्त्र नही रह सकता, इसी प्रकार जीवका ज्ञान-प्रकाश भी जीव पदार्थके बिना स्वतन्त्र नहीं रह सकता। गुण या शक्ति पदार्थके आश्रित ही रहती है स्वतन्त्र
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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