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जैनदर्शनकी मान्यता है कि पदार्थ छह हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । यहाँ धर्म-अधर्म जैनदर्शनके ऐसे पारिभाषिक शब्द हैं जो पुण्य-पापसे भिन्न अर्थ-बोधक है। जैनदर्शनमे पदार्थ विज्ञानका यह विपय जितना गूढ है उतना ही स्पष्ट और महत्वपूर्ण भी है। अनेक जैन आचार्योने दर्शन ग्रन्योमे इस पिषयपर सविस्तार प्रकाश डाला है। कुछ महान् ग्रन्थ तो माय इसी विषयका निरूपण करनेके उद्देश्यसे लिखे गये है।
भारतीय ज्ञानपीठने जहां प्राचीन आचार्यों द्वारा प्रणीत जेनधर्म-दर्शनके सिद्धान्त-ग्रन्थोका प्रकाशन किया है वहां यह जैनधर्मदर्शनका लोकोपयोगी साहित्य भी समय-समय पर प्रकाशित कर समाजके हाथो समर्पित करती आ रही है। प्रस्तुत पुस्तक 'पदार्थ विज्ञान' भी इसी शृखलाको एक नयी कडी है । इसे जैनधर्म-दर्शनके गहन अध्येता ब्र. श्री जिनेन्द्र वर्णीने जनसाधारणको एवं छात्र-बुद्धि को ध्यानमे रखकर लिखा है। उनकी इस पुस्तककी विशेषता यह है कि इसमे उन्होने एक आधुनिक वैज्ञानिककी दृष्टिको सन्तकी दार्शनिक दृष्टिसे सपृक्त करके पदार्थ-विज्ञानके रहस्योको, अर्थात् जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल आदिको प्रकृतिको बहुत ही सरल, बोधगम्य भाषामे प्रतिपादित किया है। सरलताके साथ सरसता और अध्ययन-मननक समय चेतना-शक्तिकी निकटता बनी रहे--इस विचारसे उन्होने विषयका विवेचन उपदेशात्मक शैलीमे प्रस्तुत करना उचित समझा। हमने भी उनकी इस विषय दृष्टिका आदर कर शैलीमे सशोधनादि करना आवश्यक नहीं समझा। हृदय तक पहुँचे, यही उद्देश्य है।
-लक्ष्मीचन्द्र जैन