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पदार्थ विशेष
१ सत् खोजनेकी आवश्यकता, २. विश्व में दो पदार्थ है, ३. दोनो पदार्थोके नाम तथा अर्थ, ४ मूर्तिक तथा अमूर्तिक, ५. सक्रिय तथा अक्रिय, ६. दोनो पदार्थोका सक्षिप्त परिचय, ७. जीवका सक्षिप्त परिचय, ८. अजीवका सक्षिप्त परिचय, ९: जीव-अजीवका नाटक, १०. पदार्थों को जानने का प्रयोजन ।
१, सत् खोजनेकी आवश्यकता
अहा हा कितनी विचित्र है पदार्थकी लीला । कितना सुन्दर है पदार्थका नृत्य । कितना अनौखा है पदार्थका स्वाग, जिसे देखकर सारा जगत् चक्करमे पड गया है, जिसे देखकर सारा विश्व ही विमूढ हो गया है। वह बाहरके इस तरगित प्रवाहको देखकर इसे ही पकडनेको दौड़ रहा है। वह इस अनित्य असत्को ही सत् मानकर इसमे स्वयंको खो बैठा है। मिथ्याको सत्य मानकर दुखी हो रहा है, जैसे कि प्रतिबिम्बको देखकर उसे 'पकडनेके लिए बच्चा दुखी होता है । तेरा भ्रम ही सबसे बडा दु.ख है। यदि तेरी अन्तर्चक्षु खुल जाये, तू पदार्थके स्वागको समझकर इसके पीछे बैठे हुए वास्तविक सत्के दर्शन कर ले, तो फिर तेरे दुखी होने को अवकाश न रहे । तू सदा आनन्दमग्न हो जाय। वह आनन्द ही धर्म है। इसलिए धर्मके क्षेत्रमे पदार्थको भलीभांति जानकर सत्की खोज करना अत्यन्त आवश्यक है।