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पदार्थ विज्ञान
भावो या गणोवाला जो है वह जडद्रव्य है। उस-उस द्रव्यके अपनेअपने पृथक्-पृथक् ही कोई भाव विशेष या गण न हो तो सव पदार्थ मिलकर एक हो जायें, जगत्मे यह चित्रता-विचित्रता देखनेको न मिले।
अतः पदार्थमे ये चार बातें देखी जाती हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव । किसी भी पदार्थका विशेष परिचय प्राप्त करनेके लिए उस पदार्थका विश्लेषण करनेकी आवश्यकता पडा करती है। ऐसे अवसरपर पदार्थके इस चतुष्टयका आश्रय लेना आवश्यक है। चार प्रकारसे पदार्थको पढकर उसके सम्बन्धमे कोई शका नही रह सकती। जड या चेतन प्रत्येक पदार्थमे ये चारो बातें पायी जाती है । इसलिए इन्हे पदार्थके स्वभाव चतुष्टय कहते हैं। चतुष्टयका अर्थ चार बातोका संग्रह है। इस चतुष्टयको सर्वत्र ध्यानमे रखना चाहिए। क्योकि आगे पदार्थको विशेषता समझते हुए इसका काम पड़ेगा। १५. सामान्य व विशेष __ स्वभाव-चतुष्टय भी दो प्रकारसे देखा जाता है-सामान्य रूपसे और विशेष रूपसे। सामान्य उस एक भाव या स्वभावको कहते हैं जो उस पदार्थकी समस्त विशेषताओमे सर्वत्र तथा सर्वदा ज्योका त्यो पाया जाये। और विशेष उसी सामान्यके भेद या पर्यायोको कहते हैं। __दृष्टान्तपर-से समझिए। द्रव्यकी अपेक्षा देखनेपर वृक्ष यद्यपि अनेक हैं परन्तु उन सबमे पाया जानेवाला वृक्षत्व एक है क्योकि १० हो या ५०, हैं तो वृक्ष ही। इसलिए वृक्षत्वको सामान्य द्रव्य समझें और अनेक संख्यामे विभाजित पृथक्-पृथक् वृक्षोको विशेष समझें। सामान्य दृष्टिसे द्रव्य एक है और विशेष दृष्टिसे अनेक।