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पदार्थ विज्ञान सकते है कि यहाँ इसमे ये अमुक गुण हैं। आममे मिठास गुण है ऐसा कहते हो यह भान हो जाता है कि आम पदार्थके सीमित आकारमे ही यह गुण है, बाहर नही। अत यदि गुणोका समूह द्रव्य है या द्रव्यमे गुण रहते हैं, तो अवश्य ही उसका कोई छोटा या बडा आकार होना चाहिए, वह तिकोन हो कि चौकोन, गोल हो कि चपटा । आकाश महान तथा व्यापक है और परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म है परन्तु उनका भी आकार है तो अवश्य । आकार न हो तो गुणोकी सीमाका निर्धारण कैसे सम्भव हो। प्रत्येक गुण प्रत्येक स्थानपर ही रहने लगें क्योकि गुणका अपना कोई स्वतन्त्र आकार नही होता। मिठास नामके गुणका या उष्णता नामके गुणका क्या आकार ? वे जिस पदार्थमे रहते हैं उस आमका तथा अग्निका आकार अवश्य है । यदि प्रत्येक ही गुण प्रत्येक स्थानपर रहे तो 'यह पदार्थ', 'वह पदार्थ', 'चेतन पदार्थ' ऐसा विभेद कैसे किया जा सकता है ? इसलिए पदार्थका कोई न कोई आकार अवश्य होना चाहिए। बस आकारके द्वारा सीमित जो कुछ भी है वही द्रव्य कहलाता है। या यो कह लीजिए कि द्रव्यको कोई न कोई सीमा है । सोमा कहो या क्षेत्र कहो एक ही बात है, क्योकि इतनी लम्बाई, चौडाई, मोटाईवाले क्षेत्रकी सीमाओको घेरकर रहनेवाला ही द्रव्य है। द्रव्यके इस आकारको ही उसका स्व क्षेत्र' कहते हैं ।
द्रव्यका यह क्षेत्र पूरा का पूरा उसके प्रत्येक गुण या प्रत्येक पर्यायसे भरा रहता है। ऐसा कभी भी होने नही पाता कि उस क्षेत्रके किसी कोनेमे तो एक गुण रहता है और किसीमे दूसरा तथा कोई एक कोना बिलकुल ही रीता पडा है। न ही ऐसा होता है कि कोई एक गुण उस सीमाके बाहर रहता है और कोई उस सीमाके अन्दर । सभी गुण और उनकी सभी पर्याये उस द्रव्यके सम्पूर्ण क्षेत्रमे एक साथ व्यापकर रहते हैं और इस प्रकार द्रव्यके जिस