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पदार्थ विज्ञान
हरा-पीला या खट्टा-मीठा आदि जो कुछ भी देखा गया है वह वास्तवमे पर्याय है पदार्थ व गुण नही, क्योकि ये बदलनेवाले हैं, अनित्य हैं। पदार्थ या गुण अनित्य नही होते, वे इस पर्यायमालाके मूलमे बैठे हुए नित्य होते है । अत. सिद्धान्त निकल गया कि जो कुछ भी देखने, चखने या अनुभव करनेमे आता है वह सब पर्याय है पदार्थ व गुण नही । इसीको यो भी कह सकते है कि जो कुछ भी देखने या अनुभवमे आ रहा है वह सब अनित्य है नित्य नही।
तो फिर नित्य जो पदार्थ तथा गुण हैं वे कोई वस्तु ही न रहे, क्योकि जो बात जानी ही न जाये वह तो गधेके सीगवत् असत् होती है । पदार्थ व गुण बिलकुल भी जाने न जा सकें सो बात नही है । भले इन्द्रियो आदिसे उनका प्रत्यक्ष न किया जा सकता हो, परन्तु विचार-विशेषसे अवश्य उनकी सत्ता मालूम की जा सकती है । पर्याय बिना गुण या पदार्थके रह नही सकती, इसलिए पदार्थ व गुण अवश्य हैं। जैसे कि आम नामका पदार्थ या रस नामका गुण तो न हो परन्तु कच्चा-पक्कापना हों या खट्टा मीठापना हो, यह कैसे सम्भव है ? आम पदार्थ तथा उसका रस नामका गुण ही तो परिवर्तन पाकर कच्चेसे पक्का तथा खट्टेसे मीठा हुआ है। इस प्रकार पदार्थ तथा गुण अनुमानके विषय अवश्य बन जाते हैं। १२ सत्की खोज
उपर्युक्त कथन-परसे इतना सिद्ध हो जाता है कि पदार्थ भी सत् है और उसके गुण भी सत् है क्योकि अनुमान द्वारा जाने जाते हैं पर्याय तो सत् है ही, क्योकि उसका तो प्रत्यक्ष ही हो रहा है। जो कुछ भी जाननेमे आये वह 'सत्' होता है। जो जाननेमे न आये, केवल कल्पना हो वह 'असत्' होता है। गधेके सीग तथा वन्ध्याका पुत्र कल्पना मात्र असत् हैं, क्योकि तीन कालमे भी