SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदार्थ विज्ञान सकती है अथवा गुणोको बताकर ही करायी जा सकती है, जैसे कि प्रकाशकत्व, दाहकत्व आदिको दूरसे देखकर या किसीके मुखसे सुनकर अग्नि पदार्थका ज्ञान स्वत हो जाता है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना। ९ गुण भी परिवर्तनशील है पदार्थकी भांति गुण भी परिवर्तनशील हैं। वास्तवमे जव पदार्थ गुणोसे भिन्न कोई वस्तु है ही नही, तव गुणोसे पृथक् पदार्थका परिवर्तन भी क्या ? गुणोके परिवर्तनसे ही पदार्थका परिवर्तन होता है, जैसे कि व्यक्तियोके परिवर्तनसे ही देशका परिवर्तन होता है। आम्रफलका पकना क्या ? उसका रग, उसका स्वाद, उसकी गन्ध, उसका स्पर्श, इन सब गुणोका बदल जाना ही तो आमका पकना है या इसके अतिरिक्त कुछ और ? इसी प्रकार यह जो कहा जाता है कि अब तो तुम बिलकुल बदल गये, इसका क्या अर्थ? आपकी आयु, आपका स्वभाव आदि जो अनेक गुण है उनकोर, बदलना ही तो आपका बदलना है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना। पदार्थ बदलनेपर वास्तवमे उसके गुण, उसका स्पर्श, उसका रस, उसकी गन्ध, उसका र ग, उसका ज्ञान, उसका स्वभाव आदि ही बदला करते हैं। इस परसे समझ लेना चाहिए कि गुण परिवर्तनशील हैं अर्थात् उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त हैं। खट्टेसे मीठा होकर भी रहा तो स्वाद ही, रहा तो जिह्वा इन्द्रियका विषय ही । खट्टेसे मीठा हो जाना उस रस गुणका बदल जाना है परन्तु रसका रस रूप ही बने रहना. बदलकर अन्य इन्द्रियका विषयभूत : रग आदि न बन जाना ही उसकी ध्र वता या नित्यता है । इसी प्रकार हरेसे पीला हो जाना ही रंग गुणका बदलना है, परन्तु रंगका रंग रूपसे ही बने रहना, बदलकर अन्य इन्द्रियका विपयभूत
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy