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११ काल पदार्थ
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सुखमा दुखमा कालमें वे इसकी अपेक्षा भी घट जाते हैं । दु.खमा-सुखमा नामके चौथे कालमे आयु हजारो वर्षकी रह जाती है और इसी प्रकार शरीरकी ऊँचाई तथा बल भी । पचम दुःखमा कालमे आयु केवल १०० वर्षकी अधिकसे अधिक रह जाती है, शरीरकी ऊँचाई तथा बल भी बहुत घट जाते हैं । यहाँ तक कि छठे कालमे आयु केवल १२ वर्षकी रह जाती है और शरीरको ऊँचाई केवल एक हाथकी । बल तुच्छ मात्र ही रहता है ।
इसी प्रकार धर्म सम्बन्धमे भी जानना । पहले तीन सुखमा काल भोग-प्रधान है, अतः उन कालोमे अधर्म होता है न धर्मं । चौथे दुःखमा सुखमा कालमे जब कुछ दुःख बढता है तब मनुष्यको धर्म करनेकी बुद्धि उपजती है । क्योकि उस कालमे मनुष्योकी प्रकृति बहुत सरल होती है इसलिए धर्मका विकास भी सहज होता है । इसी कालमे क्रमसे एकके पीछे एक २४ तीर्थंकर अवतार लेते हैं । पचम कालमे आकर मनुष्यकी प्रकृति विलास तथा माया प्रधान हो जाती है, अत धर्मकी अत्यन्त हानि होती है । तीथंकरोका अवतार रुक जाता है, बहुत ऊँचे ऋषि तपस्वी भी नही होते, फिर भी कुछ न कुछ धर्म-कर्म रहता है। छठे दुखमा दुखमा कालमे घर्म कर्म बिलकुल विलुप्त हो जाता है । प्राकृतिक सुविधाएँ नष्ट हो जाती हैं और सर्वत्र अराजकताका साम्राज्य छा जाता है । प्राकृतिक प्रकोप बढ जाता है, सब कुछ प्रलयाग्निमे भस्म हो जाता है, पृथिवी शून्यप्राय हो जाती है ।
कुछ काल पश्चात् उत्पत्ति प्रारम्भ होती है । उस समय भी व्यक्ति बिलकुल असस्कृत होनेके कारण, आयु व शरीर बहुत छोटे तथा निर्वल होनेके कारण और प्रकृति विरुद्ध रहने के कारण दुख ही प्रधान रहता है । धीरे-धीरे विद्या आदिका विकास होनेपर सुख होने लगता है, धर्म भी प्रकट होने लगता है, और उसके फलस्वरूप