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९ आकाश द्रव्य
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सबसे ऊँचे मस्तकपर सिद्धलोक है। यहाँ वे मुक्त आत्माएँ जाकर वास करती हैं, जो कि शरीर तथा अन्त करणसे मुक्त हो जाती हैं, जिन्हे कि पहले मुक्त-जीव कहा गया है, जो शरीर रहित तथा अमूर्तिक होती हैं। वे पवित्र मुक्त आत्माएँ ही सिद्ध-जीव कहलाते हैं। वे इस स्थानपर रहते हैं, इसलिए इसे सिद्ध-लोक कहते हैं।
मध्यलोकमे असख्यात द्वीप (पृथिवी) समुद्र है जो एकके पश्चात् एक, एक दूसरेको घेरकर स्थित है । इनमे मनुष्य तथा तिथंच वास करते है। इसलिए द्वीप समुद्रोको मर्त्यलोक भी कहते है। मनुष्यो आदिके अतिरिक्त यहाँ तीन जातिके देव भी रहते है। पृथिवीपर भूत-प्रेत आदि देवोके रहनेके कारण इसे प्रेतलोक भी कहा गया है।
कुछ लाख मील ऊपर तक अन्तरिक्ष लोक है। इसमे असख्यात सूर्य, चन्द्र तथा सितारे आदि हैं। प्रत्येक द्वीप तथा समुद्रके ऊपर पृथक्-पृथक् सौर-मण्डल हैं। जितने द्वीप समुद्र हैं उससे कई गुने सौर-मण्डल हैं। एक चन्द्रमा तथा असख्यात तारे मिलकर एक सूर्यका कुटुम्ब होता है। सूर्य तथा उसका कुटुम्ब मिलकर एक सौरमण्डल कहलाता है। सूर्य-चन्द्रादिमे भी ज्योतिष जातिके देव रहते हैं। इन्हे ज्योतिष देव कहते हैं। ज्योतिका अर्थ प्रकाश होता है, ज्योतिष अर्थात् प्रकाश करनेवाले। इसीसे इस अन्तरिक्ष लोकको ज्योतिष लोक कहते हैं।
अधोलोकमे नीचे-नीचे जो सात विभाग किये गये हैं, उन्हे सात नरक कहते है। ऊपरवाले नरकोकी अपेक्षा नीचेवाले नरकोमे अधिक दु.ख है। इसमे नारकी रहते हैं, इसलिए इसे नरकलोक कहते हैं।