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________________ २०८ पदार्थ विज्ञान कारण इसे वायुमण्डल कहा जाता हो परन्तु आकाश वायुने पृथक् ही कुछ पदार्थ है । वायु स्वय आकाश नही है । जिसमें वह रहती है तथा सचार करती है वह आकाश है । ऊपर अन्तरिक्षमे जहाँ आज के विज्ञान द्वारा भेजे गये स्पुत्निक घूम रहे हैं वहाँ वायुका नाम भी नही है, परन्तु आकाश है। जिस खाली जगहमे वे घूम रहे हैं उसे ही यहाँ आकाश कहा जा रहा है । २. श्राकाश व्यापक है खाली जगह रूप यह आकाश सर्वत्र व्याप्त है । इसमें सब रहते हैं, पर यह किसी नही रहता, जिस प्रकार कि मनुष्य ही मकानमे रहते हैं पर मकान मनुष्य मे नही रहता । पृथिवी, सूर्य चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारामण्डल, वायु, अग्नि सभी इस आकाशमे रहते हैं । आकाशको विश्वका निवासस्थान कहा जाये तो अनुपयुक्त न होगा । जहाँ तक दृष्टि फैलायें वहाँ तक सर्वत्र आकाश ही आकाश है । दृष्टि तो बहुत छोटी चीज़ है, वह तो क्षितिजपर जाकर समाप्त हो जाती है, पर आकाश वहाँसे भी आगे अनन्त तक चला गया है जो तर्क से ही जाना जा सकता है । जिस स्थानपर हम खड़े हैं उस स्थान से १०० मीलपर क्षितिज दिखाई देता है । ऐसा प्रतीत होता है कि आकाशकी सीमा वही तक है, परन्तु ऐसा वास्तव मे नही है । वह आकाशकी नही हमारी दृष्टिकी सीमा है । यदि हम स्वय १०० मील आगे चले जायें अर्थात् उस स्थानपर पहुँच जायें, जिस स्थान पर कि क्षितिज दिखाई देता था तो वही क्षितिज पुन. १०० मील आगे दिखाई देने लगता है । इसी प्रकार उस नये क्षितिजपर पहुँचकर देखनेसे वह और भी १०० मील आगे बढ जाता है । उसकी समाप्ति कहाँ होती है, अर्थात् अन्तिम झितिज कहाँ है जहाँ पहुँचकर कि आगे नया क्षितिज दिखाई न दे, यह कोई नही बता सकता । इस तर्कपर से जाना जाता जाता है कि आकाश हर दिशा
SR No.009557
Book TitlePadartha Vigyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1982
Total Pages277
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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