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८ पुद्गल-पदार्थ
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इसी प्रकार स जीवोके शरीर मे भी ये पाँचो तत्त्व देखे जा सकते हैं । शरीरमे रहनेवाले हड्डी, नसा मास, विष्टा आदि ठोस पदार्थोंमे पृथ्वीका और रक्त-मूत्र आदिमे जलका अधिक्य है । आमाशयमे जठराग्नि है और उदर तथा नसाजाल आदिमे रहने वाली पोलाहट आकाश तत्त्व है । इस प्रकार समस्त त्रस जीवोका शरीर इन पाँच भूतोके सघात रूपसे ही स्थित है । मृत्युके पश्चात् भी गल-सडकर या जलकर ये पाँचो तत्त्व पूर्वोक्त प्रकार अपने-अपने मूल पदार्थोंमे समा जाते हैं ।
अत कह सकते हैं कि जातियोंके रूपमे भले ही छह प्रकारका कहो परन्तु मूल भूत पदार्थोंकी अपेक्षा ये पांच महाभूत ही है. जिनमे से पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु तो पुद्गल पदार्थ हैं और आकाश एक स्वतन्त्र पदार्थ है । इस दृष्टिसे देखने पर पोद्गलिक या भौतिक जगत्मे, जिसमे कि इतनी चित्रता - विचित्रता दिखाई देती है तथा जिसमे कि मानवकी बुद्धि उलझी पडी है, वास्तवमे पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु इन चार भूतोके अतिरिक्त कुछ भी नही है । इन चार तथा पाँचवें आकाशके ही हीनाधिक अंशोका विभिन्न प्रकारसे सात या सयोग हो जाने पर ये चित्र-विचित्र पदार्थ बन जाते हैं और कुछ काल पर्यन्त टिककर पुन. उन्हीमे लीन हो जाते हैं । इस प्रकार ये पचभूत ही सर्वत्र नृत्य कर रहे हैं, इनके अतिरिक्त अन्य कुछ नही है । बाहरमे दीखनेवाले ये अनन्तो रूप इन्ही मूल पदार्थों की पर्यायें या अवस्थाएं- विशेष हैं, जिनकी अपनी कोई स्वतत्र सत्ता नही । अतः यह सब दृष्ट पदार्थ सत् नही कहे जा सकते ।
५ मूल पदार्थ परमाणु
इतना ही नही, अभी और सूक्ष्म दृष्टिसे देखिए । वास्तवमे पृथ्वी आदि चारो मूल पुद्गल भी अपनी कोई स्वतन्त्र सत्ता नही