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पदार्थ विज्ञान
है-शारीरिक व मानसिक । सुखके साधन भी दो प्रकारके हैंशारीरिक व मानसिक । व्यापार व कार्य तथा कर्तव्य-अकर्तव्य भी दो प्रकारके हैं-शारीरिक व मानसिक । स्वभाव या धर्म भी दो प्रकारके हैं-शारीरिक व मानसिक । शरीर बाहरमे दिखाई देता है और इसके सुखको, सुखके साधनको तथा तत्सम्बन्धी व्यापार व कार्योंको हम जानते हैं । परन्तु मन दिखाई नही देता इसलिए उसके सुखको, सुखके साधनोको तथा तत्सम्बन्धी व्यापार व कार्योंको हम नही जानते । शरीरके धर्म व अधर्म है स्वास्थ्य व रोग, उन्हे तो हम जानते हैं और इसलिए देहकी रक्षाके लिए सदा उसके धर्मको ही अपनाते हैं अधर्मको नही । परन्तु मनका धर्म जो सुख व शान्ति है उसको हम नही जानते, इसलिए उसकी परवाह भी नही करते । शरीरकी भांति वह भी कुछ है, ऐसा जानकर उसके स्वास्थ्यके लिए भी कुछ करना ही धर्म है। __ सुख व शान्तिका आधार आपके मन, वचन व काय हैं । ये तीनो ही हर समय कुछ न कुछ काम करते रहते है । कर्तव्य व अकर्तव्यका ठीक-ठीक प्रकार निर्णय न होनेके कारण, आप विवेकशून्य बने अपनी मर्जीसे कुछ भी कर बैठते हैं और उसका फल पाकर दुखी व सुखी होते रहते हैं। यदि आपका काम ठीक हुआ तो उसका फल सुख होता है और यदि वह ठीक नहीं हुआ तो उसका फल दुःख होता है, जैसे कि क्रोधके आवेशमे किसीके मारनेपीटने या लड़ने-झगडनेसे यद्यपि उस समय आपको पता न चले तदपि पोछेसे उसका फल व्याकुलता व चिन्ता ही होता है, परन्तु प्रेममे भीगकर किसीकी सहायता आदि करनेसे उस समय भी सुख । महसूस होता है और पीछे भी। बस हम कह सकते हैं कि करने योग्य कार्यके करनेका फल सुख और न करने योग्य कार्यके करनेका फल दुख होता है। इसे ही कर्तव्य-अकर्तव्यका विवेक कहते हैं ।