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७ अजीव पदार्थ सामान्य
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पदार्थका रग-मच है जिसपर यह अनेको स्वाग धर-धरकर आता है और ज्ञाता-द्रष्टा चेतनको चक्करमे डाल देता है, इतना कि वह यह भी भूल जाता है कि वास्तवमे वह स्वय कौन है। उसे यह स्वाग स्वयं अपना ही दिखाई देने लगता है और इस प्रकार उलझ जाता है, इसमे । इसलिए अजीव पदार्थकी विचित्रताएँ तथा बिशेषताएँ अर्थात् भेद-प्रभेद जानने योग्य हैं ।
४. मूर्तिक तथा प्रमूर्तिक
अजीव पदार्थ एक ही प्रकारका हो सो बात नही । इसमे भी कुछ दृष्ट है और कुछ अदृष्ट । अर्थात् अजीव पदार्थ दो प्रकारका है - मूर्तिक तथा अमूर्तिक । यह बात पहले भी बतायी जा चुकी है कि जो पदार्थ इन्द्रियो द्वारा छूकर, चखकर, सू घकर या सुनकर जाना जाये उसे मूर्तिक या रूपी कहते हैं और जो इन्द्रियो द्वारा न जाना जाये उसे अमूर्तिक कहते हैं । जीव पदार्थ केवल अमूर्तिक हैं, परन्तु अजीव पदार्थ मूर्तिक तथा अमूर्तिक दोनो प्रकार का है ।
लोकमे दिखाई देनेवाले जितने भी दृष्ट पदार्थ है वे सब मूर्तिक है क्योकि इन्द्रियो द्वारा देखे तथा जाने जा रहे हैं, और इस प्रकार पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, ईंट, पत्थर, महल और चमडे हड्डीवाला यह शरीर सब मूर्तिक अजीव पदार्थ हैं । आकाश तथा इसी प्रकारके अन्य कुछ पदार्थ अमूर्तिक अजीव पदार्थ है ।
५ षट् द्रव्योमे पांच अजीव
बताया जा चुका है
पहले भी पदार्थ - सामान्य अधिकारमे जीव तथा अजीव पदार्थोंक मूल छह भेद है- जीव, पुद्गल, धर्म, अर्धम, आकाश तथा काल । ये ही जैन आगम मे षट् द्रव्योंके नामसे प्रसिद्ध हैं । इनमे से जीव पदार्थ तो जीव है ही शेष पांच अजीव
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