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६ जीवके धर्म तथा गुण
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जब उसकी पोल खुलती है तब जान ली जाती है। लोभ सबसे सूक्ष्म है, क्योकि यह तो किसी भी प्रकार जाना नहीं जा सकता। इसका निवास अत्यन्त गुप्त है । यह अन्दर ही अन्दर बैठा व्यक्तिको स्वार्थकी ओर अग्रसर करता रहता है, और अन्याय व अनीतिका उपदेश देता रहता है, परन्तु स्वयं प्रकट नही होता। __ लोभकी माता एषणा या इच्छा है। यह भी कई प्रकारको है जैसे-पुढेषणा, वित्तषणा, ज्ञानेषणा, लोकेषणा, इत्यादि । पुत्रको इच्छा पुत्रेषणा है। धनकी इच्छा वित्तेषणा है। ज्ञान प्राप्तिकी इच्छा ज्ञानेषणा है । ख्याति लाभ पूजाकी इच्छा लोकेषणा है । सब कषायोकी जननी यह इच्छा है। इसीसे लोभ उत्पन्न होता है, लोभसे स्वार्थ होता है, स्वार्थकी पूर्तिके अर्थ अन्याय-अनथ किये जाते हैं। अन्याय करनेके लिए माया व छल-कपटका आश्रय लेना पडता है। एषणाओ की किंचित् पूर्ति हो जानेपर 'मैने यह काम कर लिया, देखो कितना चतुर हूँ' ऐसा अहकार होता है। अहंकारसे अभिमान जन्म पाता है। यदि कदाचित् इच्छाकी पूर्तिमे बाधा पडती है या अभिमानपर किसीके द्वारा आघात होता है, तो बस क्रोध आ धमकता है। इसलिए सर्व कषायोकी मूल इच्छा है। यह अत्यन्त सूक्ष्म होती है और किसी प्रकार भी जानी नही जा सकती। दूसरा व्यक्ति तो क्या स्वय वह व्यक्ति भी नही जान सकता, जिसमे कि वह वास करतो है। इच्छाकी सूक्ष्म व गुप्त अवस्थाका नाम वासना है, और इसकी तीव्रताका नाम तृष्णा या अभिलाषा है। ___ इन सब कषायोके अतिरिक्त कुछ और भी हैं जिनमे से नौ प्रधान हैं-रति, अरति, हास्य, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद नपुसकवेद । भोगोमे आसक्ति का होना रति है । अनिष्टताओसे दूर हटनेका भाव अरति है। हंसी-ठट्टेका भाव हास्य है। इष्ट पदार्थके