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६ जीवके धर्म तथा गुण
१५५ योगियोको ही उनके तपके प्रभावसे प्रकट होता है। यह ज्ञान भी किन्हीको हीन तथा किन्हीको अधिक होता है। इस ज्ञानके दो भेद है-अवधिज्ञान तथा विभगज्ञान । अवधिज्ञान तो ऊपर बता ही दिया गया। विभंगज्ञान नारकियोको तथा नीच अज्ञानी देवोको होता है। इस ज्ञानके द्वारा भूत-भविष्यत्की बात तो अवश्य जानी जाती है, परन्तु ऐसी बातें ही जानी जाती है, जिनको जानकर कि द्वेष, लड़ाई, मार-पीट होने लगे। कोई भी प्रेमवर्धक बात जाननेमे नही आती। जैसे कि 'इस व्यक्तिने पूर्व भवमे मेरी स्त्रीका हरण किया था', यह बात तो जाननेमे आ जाती है, पर इस व्यक्तिने मेरे साथ यह उपकार किया था, ऐसी वातकी तरफ ध्यान भीनही जाता। इसका कारण भी यही है कि अत्यन्त नीची प्रकृतिके मलिन अन्तः करणमे इसका उदय होता है। नरक तथा देवगति मे सभीको यह स्वाभाविक होता है। १५ मन पर्यय ज्ञान ___मन.पर्यय तो और भी विचित्र प्रकारका ज्ञान है। इसके द्वारा योगी अपने सामने आये हुए व्यक्तिके मनकी अत्यन्त सूक्ष्म वातको भी प्रत्यक्ष जान लेते हैं । यहाँ तक भी जान लेते है कि कुछ दिन या घण्टो पहले इसने क्या सोचा था और कुछ दिन या घण्टो पश्चात् यह क्या सोचेगा? यह ज्ञान गृहस्थको कदापि नही हो सकता, केवल बडे-बडे विशेष ज्ञानी-तपस्वियोको ही होता है। यह भी सबको वरावर नही होता बल्कि हीन-अधिक होता है।
१६. फेवलज्ञान
विलशान अत्यन्त व्यापक होता है। इसे पूर्णज्ञान कहना पाहिए। यह हीन अधिक नहीं होता। यह एक अद्वितीय निरावरण (बिना कारना-पूरा गुना हगा ) अनन्त प्रकाश रूप होता है,