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पदार्य विज्ञान विशेष जीव अनित्य ही है। भावको अपेक्षा विचार करनेपर सामान्य रूपसे वह चित्प्रकाश मात्र है, परन्तु विशेष रूपसे शान, दर्शन, सुख, वीयं आदि अनेको गुणो तया भावोवाला है।
जीव द्रव्य अत्यन्त सूक्ष्म है, वाहरको स्थूल दृष्टि वालोकी समझमे नहीं आता। वह प्रकाश मात्र है अर्थात् जाननेको शक्ति मात्र है, अत्यन्त गहन तथा सूक्ष्म है, भावमात्र है। शरीर से सूक्ष्म इन्द्रियां होती हैं, उससे सूक्ष्म मन, उससे सूक्ष्म अहकार, उससे भी सूक्ष्म चित्त, और बुद्धि अत्यन्त सूक्ष्म है। इसका यह अर्थ नहीं कि यहाँ वडे व छोटे साइजका विचार किया जा रहा है, बल्कि यह है कि ये उत्तरोत्तर अधिक सूक्ष्म विषयको जान सकते हैं। अन्त.करणमे बुद्धि सबसे सूक्ष्म विषयको जानती है, पर जो इसकी पहुँचसे भी बाहर वेवल स्वानुभवके गोचर है वह चित्प्रकाश इससे भी अधिक सूक्ष्म है ऐसा कहा जायेगा। इसका यह अर्थ नहीं कि इसका साइज़ सूक्ष्म है बल्कि यह है कि यह जाननेमे अत्यन्त गहन है, अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टिसे ही जाना जाता है। इसको बौद्धिक ज्ञान नही जान सकता। इसका केवल दर्शन होना सम्भव है। अत. गहनताके कारण इसे अगुष्ट प्रमाण या अणु प्रमाण भी कह सकते है, क्योकि दुःख-सुखका वेदन केवल शरीरमे ही होता है। इस प्रकार यह सूक्ष्म जो परमाण उससे भी अधिक सूक्ष्म है, महान् जो आकाश उससे भी अधिक महान् तथा व्यापक है, और फिर भी शरीरके आकारका है। चित्प्रकाशको देखनेपर यह निराकार है परन्तु प्रदेशवान द्रव्यक देखनेपर यह साकार भी है। १८. जीव पदार्थ का सक्षिप्त सार
जीव-विज्ञान सम्बन्धी यह विषय क्योकि बहुत विस्तृत हो गया है और बडा विचित्र भी है, इसलिए यहाँ अन्तमे उसका एक