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५ जोव पाय विशेष
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तारतम्यके कारण ही एक गतिके अन्तर्गत अनेक प्रकारके हीन तथा अधिक सुख-दुःखके फल बन जाते हैं । १०. कायकी अपेक्षा जीवके भेद
शान्ति प्राप्ति या धर्म सम्बन्धी विषयमे जीव पदार्थ ही प्रमुख है, क्योकि धर्म तथा अधर्मका उदय इसीमे होता है । जीव कहो या चेतन कहो एक ही बात है । यद्यपि वह एक रूप ही है, परन्तु बाह्य शरीरकी उपाधियोके कारण अनेक प्रकारका देखनेमे आता है । अत उसका विस्तृत ज्ञान प्राप्त करनेके लिए उसके ये सब उपाधिकृत भेद-प्रभेद जानने आवश्यक है । इसके अतिरिक्त आगे धर्म-प्रवृत्ति सम्बन्धी उपदेशोमे अहिंसा आदिको समझने के लिए तथा तत्सम्बन्धी विवेक जागृत करनेके लिए भी जीवके भेद-प्रभेदोका स्पष्ट भान होना आवश्यक है । अब तक इन्द्रियोकी अपेक्षा, मनके सद्भाव तथा अभावकी अपेक्षा, त्रस स्थावरकी अपेक्षा तथा चार प्रतियोकी अपेक्षा उसके भेद प्रभेद बनाये गये। अब एक और प्रकारसे भी उसके भेद करके बताता हूँ, और वह प्रकार है षट्कायकी अपेक्षा भेद |
वास्तवमे ये भेद जीवके न होकर जोवके शरीरकी जातियोके हैं और इसीलिए इनको कायको अपेक्षा भेद कहा गया है, क्योकि कायका अर्थ शरीर है । इन्द्रियोकी तथा मनकी अपेक्षा जो पहले दो भेद किये हैं, उनमे जीवके ज्ञानके साधनो पर लक्ष्य रखा गया है । त्रसस्थावरवाले तीसरे भेदमे जीवत्वके जो चिह्न आहार, भय, मैथुन, परिग्रह हैं इनपर लक्ष्य रखा गया था । गतियोवाले चौथे भेदमे जीवके सुख-दुख आदिके भोगपर लक्ष्य रखा गया है। अब कायवाले इस पांचवें भेदमे जीवके साथ जो शरीर लगा हुआ है उसकी कितनी जातियाँ हैं, इस बातपर लक्ष्य रखा जायेगा । यद्यपि ये भेद शरीर या कायकी जातियोके हैं परन्तु क्योकि ये शरीर जीवके