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५ जीव पदार्थ विशेष
लाचार कोढी नरककी वेदनाका अनुभव कर रहा है, जिसपर मक्खियां भिनभिना रही हैं, जिसे तीन दिनसे कुछ खानेको भी नही मिला है, जो सड़कके किनारे पडा तडप रहा है। अथवा वे व्यक्ति नरकके दुख भोग रहे है जो दुष्काल पड़ जानेके कारण अस्थिपजर मात्र शेष रहा गये हैं, और अपनी गोदके बच्चोको भी मारकर खा रहे है।
भैया । ठीक है इस पृथिवी पर भी हमको प्रचुर सुख तथा दुख दोनो उपलब्ध होते हैं। उन सुखोको स्वर्ग-सुख और दु.खोको नरकदुख कह भी दिया जाता है, परन्तु वास्तवमे ये स्वर्ग वा नरक नही हैं। स्वर्ग उसे कहते हैं जहाँ शारीरिक दुखका लेश भी नही है और नरक उसे कहते हैं जहाँ शारीरिक सु.खका लेश भी नही है । स्वर्गमे किंचित् मात्र भी शारीरिक दु.ख नही होता, जबकि सुखीसे सुखी मनुष्य तथा तिर्यंचमे भी कुछ न कुछ दुखका लेश अवश्य पाया जाता है। इसी प्रकार नरकमे किंचित् मात्र भी शारीरिक सुख नही होता, जब कि दुखीसे दुखी मनुष्य तथा तियंचमे भी कुछ न कुछ सुखका लेश अवश्य पाया जाता है।
मनुष्य गतिमे बड़ेसे बड़े धनपतियोको यद्यपि सर्व प्रकारका सुख है, परन्तु क्या कभी उनके शरीरमे रोग नही आता ? उनका शरीर चिन्ताओके भारसे प्रायः अस्वस्थ रहता है । उनको रात्रिको पूरी नीद सोनेका भी अवसर कहाँ है ? उन्हे चैनसे बैठकर बालबच्चोंके साथ बोलनेका तथा खाना खाने तकका सुख भी कहाँ है ? अत कहा जा सकता है कि उनमे प्रचुर सुखके साथ-साथ दु खका अंश भी अवश्य विद्यमान है। इसी प्रकार प्रचुर वेदनाका अनुभव करनेवाला वह कोढी भी कदाचित् किसी राहगीरसे एक पैसा पाकर अथवा एक आधा ग्रास रोटीका खाकर अथवा प्यासा होनेपर कदाचित् पानी पीकर क्या कुछ भी सुख महसूस नहीं करता है ?