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पदार्थ विज्ञान
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पर तू भूलता है, क्योकि आज भी जितनी कुछ वातोपर तुझे विश्वास है क्या वे सब तूने आँखोसे देखी है? चन्द्रमाक प्रति जानेवाले स्पुत्निकको क्या तूने या तेरे सभी हिमायतियोंने अपनी आंखोसे देखा है ? आजको विज्ञानशालाओ मे जो नये नये अनुसन्धान हो रहे हैं, क्या तू उन्हे अखमे देख लेता है ? पहले . तू विमान अथा अग्निवाण आदिकी बात शास्त्रोमे पढ पटकर हँसा करता था, आज क्यो विश्वास करने लग गया है ? भैया ! सभी बातें अपनी ही आँखोसे देखी जायें यह आवश्यक नही । कुछ बात कोई एक व्यक्ति देखता है, और कुछ बात कोई दूसरा फिर सब परस्परमे एक दूसरेको अपनी-अपनी देखी-सुनी बातें बताते या लिखते है, और वह विषय लोगोकी श्रद्धामे प्रवेश पा जाता है । आजके समाचार-पत्रोमे आनेवाली सभी वातोको तो तू सच्ची समझता है, चाहे कितनी भी आश्चर्यकारी वे क्यो न हो, परन्तु शास्त्रोकी वातोपर तुझे विश्वास नही । इलाज हन्द क्या करें ? भैया । यह बात पहले ही अच्छी तरह समझा दो गयी है कि शास्त्रकार भी उसी प्रकार वैज्ञानिक थे, जिस प्रकार कि वर्तमानके वैज्ञानिक । अन्तर केवल इतना है कि उनका विज्ञान अन्दरमे रहनेवाले चेतन पदार्थ के सम्बन्धका था और आजका विज्ञान बाहर मे रहनेवाले इन शरीरादि भौतिक पदार्थों के सम्बन्धका है । शास्त्रकार बिलकुल विरक्त तथा निस्पृह थे । भला तू सोच तो सही कि जब भौतिक वैज्ञानिक जो कि रागी तथा स्वार्थी हैं, वे ही मिथ्या बात नही कहते तो वे नि.स्वार्थी तथा विरागीजन मिथ्या बात कहकर आपको भ्रममे क्यो डालते ?
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खैर, फिर भी तेरी तसल्लीके लिए हम इस सिद्धान्तको तर्क द्वारा तथा प्रत्यक्ष द्वारा सिद्ध करते है। भैया ! क्या तू इस बातका उत्तर दे सकता है कि एक नवजात शिशु जिसने अभी तक इस