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कुदकुद-भारता
मै नमस्कार करता हूँ। जो दिनके आदि और अंतमें सूर्यके सम्मुख स्थित होकर तपस्या करते हैं तथा कर्मोंका निर्मूलन करनेमें जो शूर हैं उन मुनियोंको वंदना करता हूँ।।१०।।
बहुविहपडिमट्ठायी, णिसिज्जवीरासणेक्कवासी य। ___ अणिट्ठीवकंडुयवदे, चत्तदेहे य वंदामि।।११।।
जो अनेक प्रकारके प्रतिमायोगोंसे स्थित रहते हैं, जो निषद्या, वीरासन और एक पार्श्व आदि आसन धारण करते हैं, जो नहीं थूकते तथा नहीं खुजलानेका व्रत धारण करते हैं तथा शरीरसे जिन्होंने ममत्वभाव छोड़ दिया है ऐसे मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।११।।
ठाणी मोणवदीए, अब्भोवासी य रुक्खमूली य।
धदकेससंसलोमे, णिप्पडियम्मे य वंदामि।।१२।। जो खड़े होकर ध्यान करते हैं, मौन व्रतका पालन करते हैं, शीतकालमें आकाशके नीचे निवास करते हैं, वर्षा ऋतुमें वृक्षके मूलमें निवास करते हैं, जो केश तथा डाढ़ी और मूंछके बालोंका लोच करते हैं तथ जो रोगादिके प्रतीकारसे रहित हैं ऐसे मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।१२।।
जल्लमल्ललित्तगत्ते, वंदे कम्ममलकलुसपरिसुद्धे ।।
दीहणहमंसुलोमे, तवसिरिभरिये णमंसामि।।१३।। जल्ल (सर्वांगमल) और मल्ल (एक अंगका मल)से जिनका शरीर लिप्त है, जो कर्मरूपी मलसे उत्पन्न होनेवाली कलुषतासे रहित हैं, जिनके नख तथा डाढ़ी-मूंछोंके बाल बढ़े हुए हैं और जो तपकी लक्ष्मीसे परिपूर्ण हैं उन मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।१२।।
णाणोदयाहिसित्ते, सीलगुणविहूसिदे तपसुगंधे।
ववगयरायसुदड्डे, सिवगइपहणायगे वंदे ।।१४।। जो ज्ञानरूप जलसे अभिषिक्त हैं, शीलरूपी गुणोंसे विभूषित हैं, तपसे सुगंधित हैं, रागरहित हैं, श्रुतसे सहित हैं और मोक्षगतिके नायक हैं उन मुनियोंको मैं वंदना करता हूँ।।१४।।
उग्गतवे दित्ततवे, तत्ततवे महातवे य घोरतवे।
वंदामि तवमहंते, तवसंजमइड्डिसंजुत्ते।।१५।। जो उग्रतप, दीप्ततप, तप्ततप, महातप और घोरतपको धारण करनेवाले हैं, जो तपके कारण इंद्रादिके द्वारा पूजित हैं तथा जो तप, संयम और ऋद्धियोंसे सहित हैं उन मुनियोंको मैं नमस्कार करता हूँ।।१५।।
आमोसहिए खेलोसहिए जल्लोसहिए तवसिद्धे। विप्पोसहिए सव्वोसहिए वंदामि तिविहेण ।।१६।।